#बातचीत_करते_रहिये
संवाद तभी तक बातचीत रहती है जब तक हम सहमती और असहमती में संतुलित बने रहते हैं अन्यथा असहमती अपने साथ क्रोध लेकर आती हैं और संवाद खत्म हो जाता हैं।ऩिदा फ़ाजली साहब ने सही फरमाया हैं...........
बात कम कीजे जहानत को छिपाते रहिये
अजनबी शहर है ये, दोस्त बनाते रहिये
दुश्मनी लाख सही, ख़त्म ना कीजे रिश्ता
दिल मिले ना मिले, हाथ मिलाते रहिये
ये तो चेहरे कि शबाहत हुई तस्वीर नही
इस पे कुछ रंग अभी और चढ़ाते रहिये
गम हैं आवारा अकेले में भटक जाता हैं
जिस जगह भी रहिये, मिलते मिलाते रहिये
जाने कब चाँद बिखर जाये जंगल में
घर की चौखट पे कोई दीप जलाते रहिये
संवाद,दो लोगो को जोड़ता हैं और प्रसन्न जीवन के लिये ये एक आवश्यकता भी हैं लेकिन ये तभी तक बेहतर हो सकता है, जब तक वो निडरता से हो.... क्योकि कभी कभी सामने वाला अपनी बात अस्वीकारे जाने के डर से कह नहीं पाता जबकि कभी ऐसा भी होता हैं कि किसी को सिर्फ अपनी ही बात सही लगती हैं...... ऐसी स्थितियों में संवाद एकतरफा हो जाता हैं।
आज के हालात में अक्सर ऐसा ही होता हैं फिर चाहे वो मैं हूँ या आप........ हम असहमती को स्वीकार नहीं कर पाते,हम जो भी सोचते है, उम्मीद करते हैं कि सामने वाला भी वैसे ही सोचे और उसका नजरिया बिल्कुल हमारी ही तरह हो। जैसे ही कोई हमारी बात से असहमत होता हैं,हम भड़क जाते हैं और इसे अपने सम्मान का हरण समझ बैठते हैं क्योकि असहमत से सहमत होना हमे आता ही नहीं हैं और हम आपा खो देते हैं।
कोई कोई हमारी बात को जानबुझकर काटते हैं तो किसी की बात को हम बेवजह नकार देते हैं,कभी हम सोचते हैं कि सामने वाला शिक्षित नहीं हैं उसे अधिक पता नहीं होगा जबकि हकीकत यह हैं कि ज्ञान कभी डिग्रीयों का मोहताज नहीं हुआ......कभी हमारे बच्चें सोचते है कि हमे नये जमाने की बातें नहीं पता जबकि बच्चे नहीं जानते कि हमारे पास अनुभवों का वो पैमाना हैं जो नये जमाने को माप सकता हैं........... कभी पुरुष सोचते हैं कि महिला हैं,इन्हे क्या पता और ऐसा ही कुछ महिलायें सोचती हैं पुरुषों के बारे में............कभी बड़े शहरों वाले गाँव वालों को बेवकुफ समझते हैं तो कभी गाँव के लोग शहरी लोगो को असभ्य समझते है.......... कहने का मतलब यही है कि तारतम्य कही नहीं हैं..... जो संवाद लोगो में होना चाहिये वही नहीं हो पा रहा। किसी को सिर्फ अपना ही पक्ष रखना हैं तो कोई असहमती के डर से अपना पक्ष ही नहीं रख पा रहा हैं।
फ़ाजली साहब के कितनी सटीक बात कही हैं---------
जिसे भी देखिये वो अपने आप में गुम है ज़ुबां मिली है मगर हम-ज़ुबां नहीं मिलता
जी हाँ, बिल्कुल सच हैं कि हमज़ुबां मिलना मुश्किल है और अगर मिल भी गया तो समझिये कि आपके प्रगति के रास्ते बंद हो गये सिर्फ अपने मन की बातें सुनते हुए आप कहाँ तक जा पायेगे....... इसलिये सफलता की राह पकड़िये और असहमती से सहमत होना सीखीये।
चतुर नार को फिर से कुछ कहना हैं, शायद आपको पसंद आये
1. सबसे पहले तो असहमती और विरोध में फर्क को समझे।
2. विरोध का मतलब आपको नकारना हैं और आप कितने भी सही हो आपको नकारना तय हैं अत: इसे किसी भी हालत में स्वीकार नहीं करना चाहिये।
3. असहमती का मतलब आपके किसी एक विचार को नकारना है और इसका खुले दिल से स्वागत करना चाहिये।
4. अगर आपकी कोई बात सामने वाला नहीं मान रहा हैं तो धैर्य बनाये रखे और इसे मान सम्मान से तो कतई ना जोड़े।
5. ध्यानपूर्वक समझने कि कोशिश करे कि असहमती की वजह क्या है ।
6. अगर कही भी आपको लगता हैं कि हो सकता है आप गलत हैं तो तत्काल अपनी सोच पर लगाम लगाये और विनम्रतापूर्वक सामने वाले को अपना पक्ष रखने बोले।
7. अगर सामने वाले से आप सहमत नहीं हैं तो तर्क सहित अपना पक्ष रखे और उसे समझने का मौका दे।
8. हो सकता है कि सामने वाले का नजरिया अलग हो ,एक बार उसके नजरिये से देखने की कोशिश जरूर करे ,आपके ज्ञान में वृद्धि होगी।
9. कई बार हम सामने वाले की बात गलत लगती हैं लेकिन डर की वजह से मौन रह जाते है और मौन का मतलब सहमती से ही होता हैं....... ऐसे मे कभी मौन ना रहे क्योकि ध्यान रखिये आप सिर्फ असहमती जता रहे हैं विरोध नही इसलिये निडरता से आवाज उठाये।
10. असहमती को कभी भी दिल से ना लगाये,संवाद खत्म होने के साथ ही मस्तिष्क को आराम दे और गहरी साँस लेकर आगे बढ़े।
11. याद रखे, असहमती भी होगी और विरोध भी होगा इसलिये आप जो भी बोले सोच समझ कर बोले और अनर्गल तो बिल्कुल ना बोले।
12. हमारा मकसद हमारा नॉलेज बढ़ाना होना चाहिये ना कि किसी को नीचा दिखाना।
13. हमे किसी से पर्सनल शिकायत रहती हैं इसका मतलब यह नहीं कि हम उसकी हर बात को गलत ठहरायेंगे,सोच बदले और आगे बढ़े।
14. जरूरी नहीं कि मीठी बातें हमेशा सही हो और कड़वी बातें गलत..... बात का मर्म समझे।
चतुर नार का कहना हैं कि ज्यादा नियम कानुनों में ना बंधते हुए हमेशा दिल खोलकर बातें करे क्योकि सोची समझी बातों से तो शह और मात का खेल खेला जाता हैं...... दिल खोलकर अगर हम दिल जीत ले तो क्या कहने..... अन्त में सबसे जरूरी बात जहाँ तक हो सके सच बोले आप हल्कापन महसूस करेगे.....कभी भी झुठ का बोझा ना लादे ☺️
संवाद तभी तक बातचीत रहती है जब तक हम सहमती और असहमती में संतुलित बने रहते हैं अन्यथा असहमती अपने साथ क्रोध लेकर आती हैं और संवाद खत्म हो जाता हैं।ऩिदा फ़ाजली साहब ने सही फरमाया हैं...........
बात कम कीजे जहानत को छिपाते रहिये
अजनबी शहर है ये, दोस्त बनाते रहिये
दुश्मनी लाख सही, ख़त्म ना कीजे रिश्ता
दिल मिले ना मिले, हाथ मिलाते रहिये
ये तो चेहरे कि शबाहत हुई तस्वीर नही
इस पे कुछ रंग अभी और चढ़ाते रहिये
गम हैं आवारा अकेले में भटक जाता हैं
जिस जगह भी रहिये, मिलते मिलाते रहिये
जाने कब चाँद बिखर जाये जंगल में
घर की चौखट पे कोई दीप जलाते रहिये
संवाद,दो लोगो को जोड़ता हैं और प्रसन्न जीवन के लिये ये एक आवश्यकता भी हैं लेकिन ये तभी तक बेहतर हो सकता है, जब तक वो निडरता से हो.... क्योकि कभी कभी सामने वाला अपनी बात अस्वीकारे जाने के डर से कह नहीं पाता जबकि कभी ऐसा भी होता हैं कि किसी को सिर्फ अपनी ही बात सही लगती हैं...... ऐसी स्थितियों में संवाद एकतरफा हो जाता हैं।
आज के हालात में अक्सर ऐसा ही होता हैं फिर चाहे वो मैं हूँ या आप........ हम असहमती को स्वीकार नहीं कर पाते,हम जो भी सोचते है, उम्मीद करते हैं कि सामने वाला भी वैसे ही सोचे और उसका नजरिया बिल्कुल हमारी ही तरह हो। जैसे ही कोई हमारी बात से असहमत होता हैं,हम भड़क जाते हैं और इसे अपने सम्मान का हरण समझ बैठते हैं क्योकि असहमत से सहमत होना हमे आता ही नहीं हैं और हम आपा खो देते हैं।
कोई कोई हमारी बात को जानबुझकर काटते हैं तो किसी की बात को हम बेवजह नकार देते हैं,कभी हम सोचते हैं कि सामने वाला शिक्षित नहीं हैं उसे अधिक पता नहीं होगा जबकि हकीकत यह हैं कि ज्ञान कभी डिग्रीयों का मोहताज नहीं हुआ......कभी हमारे बच्चें सोचते है कि हमे नये जमाने की बातें नहीं पता जबकि बच्चे नहीं जानते कि हमारे पास अनुभवों का वो पैमाना हैं जो नये जमाने को माप सकता हैं........... कभी पुरुष सोचते हैं कि महिला हैं,इन्हे क्या पता और ऐसा ही कुछ महिलायें सोचती हैं पुरुषों के बारे में............कभी बड़े शहरों वाले गाँव वालों को बेवकुफ समझते हैं तो कभी गाँव के लोग शहरी लोगो को असभ्य समझते है.......... कहने का मतलब यही है कि तारतम्य कही नहीं हैं..... जो संवाद लोगो में होना चाहिये वही नहीं हो पा रहा। किसी को सिर्फ अपना ही पक्ष रखना हैं तो कोई असहमती के डर से अपना पक्ष ही नहीं रख पा रहा हैं।
फ़ाजली साहब के कितनी सटीक बात कही हैं---------
जिसे भी देखिये वो अपने आप में गुम है ज़ुबां मिली है मगर हम-ज़ुबां नहीं मिलता
जी हाँ, बिल्कुल सच हैं कि हमज़ुबां मिलना मुश्किल है और अगर मिल भी गया तो समझिये कि आपके प्रगति के रास्ते बंद हो गये सिर्फ अपने मन की बातें सुनते हुए आप कहाँ तक जा पायेगे....... इसलिये सफलता की राह पकड़िये और असहमती से सहमत होना सीखीये।
चतुर नार को फिर से कुछ कहना हैं, शायद आपको पसंद आये
1. सबसे पहले तो असहमती और विरोध में फर्क को समझे।
2. विरोध का मतलब आपको नकारना हैं और आप कितने भी सही हो आपको नकारना तय हैं अत: इसे किसी भी हालत में स्वीकार नहीं करना चाहिये।
3. असहमती का मतलब आपके किसी एक विचार को नकारना है और इसका खुले दिल से स्वागत करना चाहिये।
4. अगर आपकी कोई बात सामने वाला नहीं मान रहा हैं तो धैर्य बनाये रखे और इसे मान सम्मान से तो कतई ना जोड़े।
5. ध्यानपूर्वक समझने कि कोशिश करे कि असहमती की वजह क्या है ।
6. अगर कही भी आपको लगता हैं कि हो सकता है आप गलत हैं तो तत्काल अपनी सोच पर लगाम लगाये और विनम्रतापूर्वक सामने वाले को अपना पक्ष रखने बोले।
7. अगर सामने वाले से आप सहमत नहीं हैं तो तर्क सहित अपना पक्ष रखे और उसे समझने का मौका दे।
8. हो सकता है कि सामने वाले का नजरिया अलग हो ,एक बार उसके नजरिये से देखने की कोशिश जरूर करे ,आपके ज्ञान में वृद्धि होगी।
9. कई बार हम सामने वाले की बात गलत लगती हैं लेकिन डर की वजह से मौन रह जाते है और मौन का मतलब सहमती से ही होता हैं....... ऐसे मे कभी मौन ना रहे क्योकि ध्यान रखिये आप सिर्फ असहमती जता रहे हैं विरोध नही इसलिये निडरता से आवाज उठाये।
10. असहमती को कभी भी दिल से ना लगाये,संवाद खत्म होने के साथ ही मस्तिष्क को आराम दे और गहरी साँस लेकर आगे बढ़े।
11. याद रखे, असहमती भी होगी और विरोध भी होगा इसलिये आप जो भी बोले सोच समझ कर बोले और अनर्गल तो बिल्कुल ना बोले।
12. हमारा मकसद हमारा नॉलेज बढ़ाना होना चाहिये ना कि किसी को नीचा दिखाना।
13. हमे किसी से पर्सनल शिकायत रहती हैं इसका मतलब यह नहीं कि हम उसकी हर बात को गलत ठहरायेंगे,सोच बदले और आगे बढ़े।
14. जरूरी नहीं कि मीठी बातें हमेशा सही हो और कड़वी बातें गलत..... बात का मर्म समझे।
चतुर नार का कहना हैं कि ज्यादा नियम कानुनों में ना बंधते हुए हमेशा दिल खोलकर बातें करे क्योकि सोची समझी बातों से तो शह और मात का खेल खेला जाता हैं...... दिल खोलकर अगर हम दिल जीत ले तो क्या कहने..... अन्त में सबसे जरूरी बात जहाँ तक हो सके सच बोले आप हल्कापन महसूस करेगे.....कभी भी झुठ का बोझा ना लादे ☺️