Wednesday, April 20, 2016

मौन

                      मौन...... एक ऐसी भाषा जिसकी कोई लिपि नहीं और कोई शब्द नहीं,फिर भी सर्वश्रेष्ठ भाषा।जिसने इस भाषा को समझ लिया,मान लिजिये कि जीवन की गहराई को समझ लिया।जिस तरह से समुद्र की गहराई में छुपे बेशकिमती हीरें मोती पाने के लिये उस गहराई तक उतरना पड़ता हैं बिल्कुल इसी तरह जब हम मौन रहते है तो अपने अन्तर्मन के समुद्र में गोते लगाते हैं और बहूत कुछ अपने मन का ऐसा निकाल लाते है जो अब तक मन के किसी कोने में दफन था।वास्तव में मौन के दौरान हम अपने आप को पुन:र्जीवित करते है। यह एक ऐसी तकनीक है जो हमे रिचार्ज करती है।
                  हालांकि मैं स्वयं बचपन में बहूत बातुनी थी,नि:सन्देह अभी भी हूँ,लेकिन पता नहीं क्यों,ये मौन हमेशा मुझे अपनी तरफ खिंचता हैं।सालों पहले जब मैंने 'आर्ट ऑफ लिविंग ' का कोर्स किया था,तब पहली बार इसका स्वाद चखा था,तब से लेकर आज तक कोशिश ही करती रही हूँ इसमे डूब जाने की,इसमें उतर कर कुछ बेशकिमती पा जाने की........ .....लेकिन मेरी कमजोरी कहिये या फिर मजबूरी,मुझे बोलना ही पड़ता हैं।हाँ इतना जरुर हैं कि इसे पाने की ख्वाहिश ने मुझे मितभाषी तो कुछ हद तक बना ही दिया,अपने आप से मिलने की जुस्तजूं ने मुझे ठोस धरातल भी दे दिया।अब मैं छिछला पानी देखने की बजाय गहराई को सीधे देख सकती हूँ,जब चाहूँ, भीड़ में रह कर भी अपने साथ बनी रहती हूँ और अकेले में पूरी दुनियां महसूस कर सकती हूँ।
          हालांकि पूरे दिन का मौन रखने का मौका तो मैं भी नहीं जुटा पायी हूँ,हाँ,कुछेक घंटें मौन रह कर मौन को जीया है। मौन से मेरा मतलब सिर्फ ना बोलने से ही नहीं हैं,मैंने अक्सर देखा है कि बहूत से लोग मौन के दौरान लिख लिख के वार्तालाप करते है,ढिंढोरा पीटते हैं अपने मौन व्रत का,ऐसे मौन से तो मैं कतई सहमत नहीं।मौन का मतलब बोलने पर लगाम लगाना नहीं हैं बल्कि अपने विचारों पर अपने दिमाग में चल रही उथल पुथल को थोड़ा विराम देने का नाम मौन है।मौन तो एक सरल सी प्रक्रिया है स्वयं को स्वयं से मिलाने की।
              दूसरों से बतियाते हुए हम अक्सर अपनेआप को खो देते हैं और अगर कभी चुप भी रहते है तब भी मन पर वार्तालाप ही हावी रहता है,दिमाग़ उफान मारता रहता हैं।क्रोध और आवेश हमे खोखला बना देते हैं उस वक्त मौन रह कर देखिये।
      समुद्र की आती जाती लहरों का उद्वेग हमे रोमांच तो देता है लेकिन ठहराव नहीं देता,वही दुसरी ओर कलकल बहती एक शांत नदी हमें सुकून देती हैं,ठहराव देती हैं........ बस, यही फर्क है वार्तालाप और मौन में।
        मुझे समझ नहीं आता कि लोग अकेलेपन को डिप्रेसन क्यो मानते है क्योकि मैं तो जब भी अकेली होती हूँ एंजॉय करती हूँ,रिचार्ज होती हूँ,पुन:र्जीवित होती हूँ,कुछ ना कुछ रचती हूँ।
चतुर नार भी मौन की भाषा समझती है,लेकिन उसका मानना हैं कि आज की एकाकी लाईफ में मौन के क्षणों को जीना आसान नहीं है इसलिये पूरे दिन की बजाय कुछ घंटों का मौन भी पर्याप्त है-

1. मौन का मतलब चुप्पी नहीं है।
2. किसी शांत स्थान पर या घर के अपने पसंद के कोने में जाकर अपने विचारों को विराम दे और महसूस करे अपने अन्तर्मन को।
3. मौन नहीं तो कम से कम मितभाषी तो बने।
4. "अधजल गगरी छलकत जाय " कभी भी अपने आप का बखान ना करे ,मौन रहकर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाये।
5. बहस ना करे
6. भीड़ में मौन को प्राथमिकता दे यकीन मानीये आप व्यर्थ के विवादों से बचे रहेंगे।
7. किसी की बात का विरोध करने की बजाय मौन रहकर मुस्कूरा दे।
8. मौन और मेडिटेशन दोनो अलग अलग प्रक्रियाएँ है।
9. मौन आपको रिजेनुएट करता है।
10. मौन के दौरान शोरगुल को नजरअंदाज करे, जरुरी नहीं कि आप काम छोड़ कर बैठ जाये,आप अपने काम करते रहे बिल्कूल 'कूल' रहकर ।
11. भले ही भीड़ में हो या परिवार के संग मौन का साथ आपको खोने नहीं देगा।
12. और जब आप खुद ही खुद के साथ होते है तो दुनियाँ भी आपके साथ चल पड़ती हैं।
              एक बार आप भी इसका स्वाद चख कर देखीये और किसी दिन हम सब साथ मिलकर इस मौन को जीयेंगे,क्या आप मेरा साथ देंगे ?

Wednesday, April 6, 2016

खुशी:आपके भीतर

             जिन्दगी की हर खुशी हमारे अन्दर समायी होती है,बस हम उसे ढ़ुंढ़ नहीं पाते और उसे पाने की जद्दोंजहद में जीवन गुजार देते हैं। बहुत बार जब मैं दुखी होती हूँ तो अपने मन की करती हूँ और वाकई मैं खुश हो जाती हूँ मतलब मन की करना ही खुशी हैं, कम से कम मेरे लिये तो।जब मैं दो पक्तियाँ अपने मन की कागज पर उतारती हूँ तो पूरा दिन खुश रहती हूँ।जरुरी नहीं कि खुशियाँ महंगें कपड़ों में हो,फाईव स्टार हॉटल के खाने में हो,हर साल विदेश यात्रा में हो,रिहायशी एरिया में रहने से हो,हाई सोसायटी में उठने बैठने से हो,यह तो वो नन्हा सा तार है जो अनायास ही आपकी आत्मा को झंकृत कर देती है। हमारे वजूद,हमारे अहसास का जिन्दा रहना ही सही मायनों में सार्थक खुशी हैं बाकि तो सब परिस्थितिनुसार परिवर्तित होने वाले क्षण मात्र है।
                            पिछले पाँच दिनों से बाई पंद्रह दिनों की छुट्टी पर हैं ,काम का भार होने के बावजुद जब मैं सुबह की वॉक पर जाती हूँ तो आते समय पसीने की बूंदों के साथ टपकती थोड़ी सी खुशी भी ले आती हूँ,अपनेआप को नजरअंदाज ना करने की खुशी,अपने लिये जीने की खुशी।
                                जो पसंद आये वो सब करने लगी हूँ मैं,अपनी जिन्दगी को जीने लगी हूँ मैं।बहुत बार मैं अपने आप को गिफ्ट्स देती हूँ,नहीं इंतजार करती किसी का कि कोई आये और खुशियाँ उपहार में दे।घर में सभी का जन्मदिन मनाती हूँ,सरप्राईज देती हूँ और जब मेरा जन्मदिन आता है तो बिल्कुल उम्मीद नही करती कि मुझे भी कोई अचम्भित करे और मैं स्वय ही खुद को पेम्पर कर लेती हूँ। ना केवल जन्मदिन धुमधाम से मनाती हूँ बल्कि सारा डेकॉरेशन भी थीम बना के करती हूँ।
           अपनी उम्र को छुपाती नहीं हूँ।चालीस पार कर गयी हूँ,खुश हूँ इस पड़ाव पर,और ना ही मुझे शौक है अपने से आधी उम्र की दिखने में,कतई नहीं चाहती कि अपनी टीनऐज बेटी की बड़ी बहन जैसी दिखु, चालीस की हूँ और चालीस का ही रूतबा चाहती हूँ।मिडिल ऐज की तकलीफें हालांकि शुरू हो गयी है फिर भी अपनी गरिमा अजीज़ है मुझे।
                जिन्दगी के इस चक्रव्युह में जब,सब उलझ जाता हैं तो मैं और पारस निकल पड़ते है उसे सुलझाने,जब दिमाग घूम जाता है तो मैं और भाभी थोड़ी गहरी दार्शनिक बातें कर लेते है,जब किसी के सहारे की जरूरत हो तो मैं किरण से आशा की किरणों को पा लेती हूँ,जब दिल में शरारत भरी हो तो परिवार के कुछ अजीज लोगों को हंगामा करने बुला लेती हूँ तो कभी अपने नितान्त अकेलेपन से बातें कर एक नया आयाम पा जाती हूँ,और बस ऐसे ही बेवजह खुश रहने की कोशिश करती हूँ।
          चतुर नार का कहना है कि आपको अपनी जिन्द़गी सिर्फ एक बार मिली है, जी लिजिये इसे खुल के कुछ सिम्पल टिप्स के साथ
1. अपने आप को प्राथमिकता देना प्रारम्भ करे।
2. अपने शौक को कभी मत मारीये।
3. अपने परिवार की मर्यादा को समझते हुए हर वो काम करे जो आपको खुशी दे।
4. बातें घुमा फिरा के करने के बजाय सीधे शालीन शब्दों का प्रयोग करे।
5. किताबें पढ़ने की आदत डालीये,ये आपकी बेहतर दोस्त हो सकती है।
6. एक छोटी सी लाईब्रेरी बनाये और कुकिंग से लेकर राजनीति तक ,यात्रा वृतांत से लेकर दर्शन शास्त्र की किताबों को उसमे जगह दे।
7. हँसते रहने की आदत डालीये, आप खुबसूरत दिखेंगी।
8. काम वाली बाई नहीं आई तो तनाव मत पालीये,जितना हो सकता है उतना काम करिये , थक गये है तो शाम का खाना बाहर से ऑर्डर करे 😜
9. मॉरनिंग वॉक,व्यायाम और काम करने की आदत रखे,यकिन मानीये आपका आत्मविश्वास बढ़ जायेगा।
10. आत्मनिर्भरता को तवज्जों दे।
11. भले ही आप हाउस वाईफ हो, अपनेआप को कमतर ना समझे, लागातार प्रयत्नशील बने रहे और अपनी पहचान बनाये रखे।
12. समय के साथ बदलते रहे,आपका आपके के बच्चों के साथ सामंजस्य बना रहेगा।
13. किसी जरूरतमंद की मदद कर के देखिये, आनन्द मिलेगा।
14. रिश्तों और आपसी संबंधों की महत्ता पहचाने,सच्चे रिश्तों के दरमियां खुली किताब बने।
15. कुछ ऊसुल खुद के बनाये और उन्हे लांघने की ईजाजत किसी को ना दे।
                यह आपकी जिन्द़गी है अपने अनुसार जीये, आपसे बेहतर आपकी जिन्द़गी को कोई नहीं जान सकता,चतुर नार भी नहीं ☺️👍🏻