Friday, July 1, 2016

संवाद

#बातचीत_करते_रहिये

           संवाद तभी तक बातचीत रहती है जब तक हम सहमती और असहमती में संतुलित बने रहते हैं अन्यथा असहमती अपने साथ क्रोध लेकर आती हैं और संवाद खत्म हो जाता हैं।ऩिदा फ़ाजली साहब ने सही फरमाया हैं...........
बात कम कीजे जहानत को छिपाते रहिये
अजनबी शहर है ये,  दोस्त बनाते रहिये
दुश्मनी लाख सही, ख़त्म  ना कीजे रिश्ता
दिल मिले ना मिले, हाथ मिलाते रहिये
ये तो चेहरे कि शबाहत हुई तस्वीर नही
इस पे कुछ रंग अभी और चढ़ाते रहिये
गम हैं आवारा अकेले में भटक जाता हैं
जिस जगह भी रहिये, मिलते मिलाते रहिये
जाने कब चाँद बिखर जाये जंगल में
घर की चौखट पे कोई दीप जलाते रहिये

         संवाद,दो लोगो को जोड़ता हैं और प्रसन्न जीवन के लिये ये एक आवश्यकता भी हैं लेकिन ये तभी तक बेहतर हो सकता है, जब तक वो निडरता से हो.... क्योकि कभी कभी सामने वाला अपनी बात अस्वीकारे जाने के डर से कह नहीं पाता जबकि कभी ऐसा भी होता हैं कि किसी को सिर्फ अपनी ही बात सही लगती हैं...... ऐसी स्थितियों में संवाद एकतरफा हो जाता हैं।
      आज के हालात में अक्सर ऐसा ही होता हैं फिर चाहे वो मैं हूँ या आप........ हम असहमती को स्वीकार नहीं कर पाते,हम जो भी सोचते है, उम्मीद करते हैं कि सामने वाला भी वैसे ही सोचे और उसका नजरिया बिल्कुल हमारी ही तरह हो। जैसे ही कोई हमारी बात से असहमत होता हैं,हम भड़क जाते हैं और इसे अपने सम्मान का हरण समझ बैठते हैं क्योकि असहमत से सहमत होना हमे आता ही नहीं हैं और हम आपा खो देते हैं।
        कोई कोई हमारी बात को जानबुझकर काटते हैं तो किसी की बात को हम बेवजह नकार देते हैं,कभी हम सोचते हैं कि सामने वाला शिक्षित नहीं हैं उसे अधिक पता नहीं होगा जबकि हकीकत यह हैं कि ज्ञान कभी डिग्रीयों का मोहताज नहीं हुआ......कभी हमारे बच्चें सोचते है कि हमे नये जमाने की बातें नहीं पता जबकि बच्चे नहीं जानते कि हमारे पास अनुभवों का वो पैमाना हैं जो नये जमाने को माप सकता हैं........... कभी पुरुष सोचते हैं कि महिला हैं,इन्हे क्या पता और ऐसा ही कुछ महिलायें सोचती हैं पुरुषों के बारे में............कभी बड़े शहरों वाले गाँव वालों को बेवकुफ समझते हैं तो कभी गाँव के लोग शहरी लोगो को असभ्य समझते है.......... कहने का मतलब यही है कि तारतम्य कही नहीं हैं..... जो संवाद लोगो में होना चाहिये वही नहीं हो पा रहा। किसी को सिर्फ अपना ही पक्ष रखना हैं तो कोई असहमती के डर से अपना पक्ष ही नहीं रख पा रहा हैं।
       फ़ाजली साहब के कितनी सटीक बात कही हैं---------
                               जिसे भी देखिये वो अपने आप में गुम है                                  ज़ुबां मिली है मगर हम-ज़ुबां नहीं मिलता
     जी हाँ, बिल्कुल सच हैं कि हमज़ुबां मिलना मुश्किल है और अगर मिल भी गया तो समझिये कि आपके प्रगति के रास्ते बंद हो गये सिर्फ अपने मन की बातें सुनते हुए आप कहाँ तक जा पायेगे....... इसलिये सफलता की राह पकड़िये और असहमती से सहमत होना सीखीये।
            चतुर नार को फिर से कुछ कहना हैं, शायद आपको पसंद आये

 1. सबसे पहले तो असहमती और विरोध में फर्क को समझे।
 2. विरोध का मतलब आपको नकारना हैं और आप कितने भी सही हो आपको नकारना तय हैं अत: इसे किसी भी हालत में स्वीकार नहीं करना चाहिये।
 3. असहमती का मतलब आपके किसी एक विचार को नकारना है और इसका खुले दिल से स्वागत करना चाहिये।
 4. अगर आपकी कोई बात सामने वाला नहीं मान रहा हैं तो धैर्य बनाये रखे और इसे मान सम्मान से तो कतई ना जोड़े।
 5. ध्यानपूर्वक समझने कि कोशिश करे कि असहमती की वजह क्या है ।
 6. अगर कही भी आपको लगता हैं कि हो सकता है आप गलत हैं तो तत्काल अपनी सोच पर लगाम लगाये और विनम्रतापूर्वक सामने वाले को अपना पक्ष रखने बोले।
 7. अगर सामने वाले से आप सहमत नहीं हैं तो तर्क सहित अपना पक्ष रखे और उसे समझने का मौका दे।
 8. हो सकता है कि सामने वाले का नजरिया अलग हो ,एक बार उसके नजरिये से देखने की कोशिश जरूर करे ,आपके ज्ञान में वृद्धि होगी।
 9. कई बार हम सामने वाले की बात गलत लगती हैं लेकिन डर की वजह से मौन रह जाते है और मौन का मतलब सहमती से ही होता हैं....... ऐसे मे कभी मौन ना रहे क्योकि ध्यान रखिये आप सिर्फ असहमती जता रहे हैं विरोध नही इसलिये निडरता से आवाज उठाये।
 10. असहमती को कभी भी दिल से ना लगाये,संवाद खत्म होने के साथ ही मस्तिष्क को आराम दे और गहरी साँस लेकर आगे बढ़े।
 11. याद रखे, असहमती भी होगी और विरोध भी होगा इसलिये आप जो भी बोले सोच समझ कर बोले और अनर्गल तो बिल्कुल ना बोले।
 12. हमारा मकसद हमारा नॉलेज बढ़ाना होना चाहिये ना कि किसी को नीचा दिखाना।
 13. हमे किसी से पर्सनल शिकायत रहती हैं इसका मतलब यह नहीं कि हम उसकी हर बात को गलत ठहरायेंगे,सोच बदले और आगे बढ़े।
 14. जरूरी नहीं कि मीठी बातें हमेशा सही हो और कड़वी बातें गलत..... बात का मर्म समझे।
             चतुर नार का कहना हैं कि ज्यादा नियम कानुनों में ना बंधते हुए हमेशा दिल खोलकर बातें करे क्योकि सोची समझी बातों से तो शह और मात का खेल खेला जाता हैं...... दिल खोलकर अगर हम दिल जीत ले तो क्या कहने..... अन्त में सबसे जरूरी बात जहाँ तक हो सके सच बोले आप हल्कापन महसूस करेगे.....कभी भी झुठ का बोझा ना लादे ☺️

Sunday, June 5, 2016

जी ले जरा



             "यूँ माना ज़िन्दगी है चार दिन की
             बहुत होते हैं यारों चार दिन भी"
     फ़िराक गोरखपुरी  के उपरोक्त शब्दों से मैं पुर्णतया सहमत हूँ.....
इन शब्दों को समझने के लिये हम एक कहानी का सहारा लेते हैं......
ज़िंदगी के 20 वर्ष हवा की तरह उड़ जाते हैं.! फिर शुरू होती है नौकरी की खोज.!
ये नहीं वो, दूर नहीं पास.
ऐसा करते 2-3 नौकरीयां छोड़ते पकड़ते,
अंत में एक तय होती है, और ज़िंदगी में थोड़ी स्थिरता की शुरूआत होती है. !

और हाथ में आता है पहली तनख्वाह का चेक, वह बैंक में जमा होता है और शुरू होता है... अकाउंट में जमा होने वाले कुछ शून्यों का अंतहीन खेल..!

इस तरह 2-3 वर्ष निकल जाते हैँ.!
'वो' स्थिर होता है.
बैंक में कुछ और शून्य जमा हो जाते हैं.
इतने में अपनी उम्र के पच्चीस वर्ष हो जाते हैं.!

विवाह की चर्चा शुरू हो जाती है. एक खुद की या माता पिता की पसंद की लड़की से यथा समय विवाह होता है और ज़िंदगी की राम कहानी शुरू हो जाती है.!

शादी के पहले 2-3 साल नर्म, गुलाबी, रसीले और सपनीले गुज़रते हैं.!
हाथों में हाथ डालकर बातें और रंग बिरंगे सपने.!
पर ये दिन जल्दी ही उड़ जाते हैं और इसी समय शायद बैंक में कुछ शून्य कम होते हैं.!
क्योंकि थोड़ी मौजमस्ती, घूमना फिरना, खरीदी होती है.!

और फिर धीरे से बच्चे के आने की आहट होती है और वर्ष भर में पालना झूलने लगता है.!

सारा ध्यान अब बच्चे पर केंद्रित हो जाता है.! उसका खाना पीना , उठना बैठना, शु-शु, पाॅटी, उसके खिलौने, कपड़े और उसका लाड़ दुलार.!
समय कैसे फटाफट निकल जाता है, पता ही नहीं चलता.!

इन सब में कब इसका हाथ उसके हाथ से निकल गया, बातें करना, घूमना फिरना कब बंद हो गया, दोनों को ही पता नहीं चला..?

इसी तरह उसकी सुबह होती गयी और बच्चा बड़ा होता गया...
वो बच्चे में व्यस्त होती गई और ये अपने काम में.!
घर की किस्त, गाड़ी की किस्त और बच्चे की ज़िम्मेदारी, उसकी शिक्षा और भविष्य की सुविधा और साथ ही बैंक में शून्य  बढ़ाने का टेंशन.!
उसने पूरी तरह से अपने आपको काम में झोंक दिया.!
बच्चे का स्कूल में एॅडमिशन हुआ और वह बड़ा होने लगा.!
उसका पूरा समय बच्चे के साथ बीतने लगा.!

इतने में वो पैंतीस का हो गया.!
खूद का घर, गाड़ी और बैंक में कई सारे शून्य.!
फिर भी कुछ कमी है..?
पर वो क्या है समझ में नहीं आता..!
इस तरह उसकी चिड़-चिड़ बढ़ती जाती है और ये भी उदासीन रहने लगता है।

दिन पर दिन बीतते गए, बच्चा बड़ा होता गया और उसका खुद का एक संसार तैयार हो गया.! उसकी दसवीं आई और चली गयी.!
तब तक दोनों ही चालीस के हो गए.!
बैंक में शून्य बढ़ता ही जा रहा है.!

एक नितांत एकांत क्षण में उसे वो गुज़रे दिन याद आते हैं और वो मौका देखकर उससे कहता है,
"अरे ज़रा यहां आओ,
पास बैठो.!"
चलो फिर एक बार हाथों में हाथ ले कर बातें करें, कहीं घूम के आएं...! उसने अजीब नज़रों से उसको देखा और कहती है,
"तुम्हें कभी भी कुछ भी सूझता है. मुझे ढेर सा काम पड़ा है और तुम्हें बातों की सूझ रही है..!" कमर में पल्लू खोंस कर वो निकल जाती है.!

और फिर आता है पैंतालीसवां साल,
आंखों पर चश्मा लग गया,
बाल अपना काला रंग छोड़ने लगे,
दिमाग में कुछ उलझनें शुरू हो जाती हैं,
बेटा अब काॅलेज में है,
बैंक में शून्य बढ़ रहे हैं, उसने अपना नाम कीर्तन मंडली में डाल दिया और...

बेटे का कालेज खत्म हो गया,
अपने पैरों पर खड़ा हो गया.!
अब उसके पर फूट गये और वो एक दिन परदेस उड़ गया...!!!

अब उसके बालों का काला रंग और कभी कभी दिमाग भी साथ छोड़ने लगा...!
उसे भी चश्मा लग गया.!
अब वो उसे उम्र दराज़ लगने लगी क्योंकि वो खुद भी बूढ़ा  हो रहा था..!

पचपन के बाद साठ की ओर बढ़ना शुरू हो गया.!
बैंक में अब कितने शून्य हो गए,
उसे कुछ खबर नहीं है. बाहर आने जाने के कार्यक्रम अपने आप बंद होने लगे..!

गोली-दवाइयों का दिन और समय निश्चित होने लगा.!
डाॅक्टरों की तारीखें भी तय होने लगीं.!
बच्चे बड़े होंगे....
ये सोचकर लिया गया घर भी अब बोझ लगने लगा.
बच्चे कब वापस आएंगे,
अब बस यही हाथ रह गया था.!

और फिर वो एक दिन आता है.!
वो सोफे पर लेटा ठंडी हवा का आनंद ले रहा था.!
वो शाम की दिया-बाती कर रही थी.!
वो देख रही थी कि वो सोफे पर लेटा है.!
इतने में फोन की घंटी बजी,
उसने लपक के फोन उठाया,
उस तरफ बेटा था.!
बेटा अपनी शादी की जानकारी देता है और बताता है कि अब वह परदेस में ही रहेगा..!
उसने बेटे से बैंक के शून्य के बारे में क्या करना यह पूछा..?
अब चूंकि विदेश के शून्य की तुलना में उसके शून्य बेटे के लिये शून्य हैं इसलिए उसने पिता को सलाह दी..!"
एक काम करिये, इन पैसों का ट्रस्ट बनाकर वृद्धाश्रम को दे दीजिए और खुद भी वहीं रहिये.!"
कुछ औपचारिक बातें करके बेटे ने फोन रख दिया..!

वो पुनः सोफे पर आ कर बैठ गया. उसकी भी दिया बाती खत्म होने आई थी.
उसने उसे आवाज़ दी,
"चलो आज फिर हाथों में हाथ ले के बातें करें.!"
वो तुरंत बोली,
"बस अभी आई.!"
उसे विश्वास नहीं हुआ,
चेहरा खुशी से चमक उठा,
आंखें भर आईं,
उसकी आंखों से गिरने लगे और गाल भीग गए,
अचानक आंखों की चमक फीकी हो गई और वो निस्तेज हो गया..!!

उसने शेष पूजा की और उसके पास आ कर बैठ गई, कहा,
"बोलो क्या बोल रहे थे.?"
पर उसने कुछ नहीं कहा.!
उसने उसके शरीर को छू कर देखा, शरीर बिल्कुल ठंडा पड़ गया था और वो एकटक उसे देख रहा था..!

क्षण भर को वो शून्य हो गई,
"क्या करूं" उसे समझ में नहीं आया..!
लेकिन एक-दो मिनट में ही वो चैतन्य हो गई,  धीरे से उठी और पूजाघर में गई.!
एक अगरबत्ती जलाई और ईश्वर को प्रणाम किया और फिर से सोफे पे आकर बैठ गई..!

उसका ठंडा हाथ हाथों में लिया और बोली,
"चलो कहां घूमने जाना है और क्या बातें करनी हैं तम्हे.!"
बोलो...!! ऐसा कहते हुए उसकी आँखें भर आईं..!
वो एकटक उसे देखती रही,
आंखों से अश्रुधारा बह निकली.!
उसका सिर उसके कंधों पर गिर गया.!
ठंडी हवा का धीमा झोंका अभी भी चल रहा था....!!

यही जिंदगी है...??
नहीं....!!!
बिल्कुल नहीं !!!!
इसे ऐसा ना बनने दे..... कहती हैं हमारी चतुर नार, जीवन सिर्फ एक बार मिलता हैं , इसे भरपूर जीये ।

1.संसाधनों का अधिक संचय न करें
2.ज्यादा चिंता न करें
3. अच्छे वक़्त के इंतज़ार में ना बैठे
4. जीवनसाथी का हाथ पकड़ने के लिये एकांत    पलों को ना ढ़ुंढ़े, जब आपका मन करे, प्यार        जताइये
5.परिस्थिति कैसी भी हो, एक दुजे का साथ कभी ना छोड़े
6. इस भ्रम मे ना रहे कि आपके बच्चें आपकी सेवा करेंगे,बदलते ज़माने के साथ बदलिये
7. अकेले रहने और अकेले घुमने की आदत डालिये क्योकि जिन्दगी की राह बच्चों के भरोसे नही कटेगी
8.नयी पीढ़ी को दोष ना दे, उनके साथ तालमेल बैठाने की कोशिश करे
9.जवानी के दिनों को याद करके ना रोये.... अगर जवानी एक बार आती हैं तो बुढ़ापा भी एक ही बार आता हैं....इसे भी ज़िन्दादिली से जीये
10.हर पल को जीयो  और अपने लिए जियो, वक्त निकालो..!
       सुख दुख आने ही हैं,यह नियम हैं ,बस दोनो में संतुलन बना रहे क्योकि वक्त तो बदलता रहता हैं.........
बस, मन में रखे सुव्यवस्थित जीवन की कामना...!!
जीवन आपका है, जीना आपने ही है...!!

Saturday, May 28, 2016

सुंदरता

सुंदरता

एक राजा को अपने लिए सेवक की आवश्यकता थी। उसके मंत्री ने दो दिनों के बाद एक योग्य व्यक्ति को राजा के सामने पेश किया। राजा ने उसे अपना सेवक बना तो लिया, पर बाद में मंत्री से कहा, 'वैसे तो यह आदमी ठीक है पर इसका रंग-रूप अच्छा नहीं है।' मंत्री को यह बात अजीब लगी पर वह चुप रहा। एक बार गर्मी के मौसम में राजा ने उस सेवक को पानी लाने के लिए कहा। सेवक सोने के पात्र में पानी लेकर आया। लेकिन राजा ने जब पानी पिया तो पानी पीने में थोड़ा गर्म लगा। राजा ने कुल्ला करके फेंक दिया। वह बोला, 'इतना गर्म पानी, वह भी गर्मी के इस मौसम में, तुम्हें इतनी भी समझ नहीं।' मंत्री यह सब देख रहा था।

मंत्री ने उस सेवक को मिट्टी के पात्र में पानी लाने को कहा। राजा ने यह पानी पीकर तृप्ति का अनुभव किया। मंत्री ने राजा से पूछा, 'महाराज, सोने के पात्र का पानी आपको अच्छा नहीं लगा। लेकिन मिट्टी के पात्र का पानी क्यों अच्छा लगा?' राजा मौन रहा। इस पर मंत्री ने कहा, 'महाराज, बाहर को नहीं, भीतर को देखें। सोने का पात्र सुंदर, मूल्यवान और अच्छा है, लेकिन शीतलता प्रदान करने का गुण इसमें नहीं है। मिट्टी का पात्र अत्यंत साधारण है, लेकिन इसमें ठंडा बना देने की क्षमता है। कोरे रंग-रूप को न देखकर, गुण को देखें।' उस दिन से राजा का नजरिया बदल गया।
    चाणक्य ने भी कहा हैं कि मनुष्य गुणों से उत्तम बनता हैं,ओहदे से नहीं।तन की सुंदरता पहली नजर में किसी को भी लुभा सकती हैं लेकिन मन की सुंदरता अपनी छाप छोड़ देती हैं।माना कि सुंदरता आकर्षित करती हैं और मौकें भी दिलाती हैं..... लेकिन इसका समय सीमित होता हैं,बाहरी सुंदरता क्षणिक भ्रम होता है जो उम्र के साथ ढ़ल जायेगा, लेकिन अगर आपका मन निष्कपट हैं,आप चिन्ता नहीं चिन्तन करते हैं तो उसका ओज आपके चेहरे पर झलकेगा और सालों साल आपको युवा और उर्जामय रखेगा। क्या फायदा ऐसी सुंदरता का जिसमे स्वार्थ और दंभ की बू आती हो । तीखे नैन नक्श हमे सुंदर नहीं बनाते बल्कि हमारी सोच,हमारे तौर तरीके,हमारा व्यवहार हमे सुंदर बनाते हैं..........इसलिये बाहरी सुंदरता की बजाय आंतरिक सुंदरता का पोषण आवश्यक हैं । चतुर नार तो सदैव ही मन की सुंदरता के महत्व को जानती बुझती आयी हैं........

 1. मुखौटा लगाने की कोशिश ना करे,अपनी सोच और अपने विचारों का स्तर बढ़ाये ।
 2. मेकअप से अपनी खामियों को ना छुपाये बल्कि अपने गुणों से अपने व्यक्तित्व को मुखर बनाये।
 3. बी ओरिजनल...... जैसे हैं वैसे रहे,सरल बने जटिल नहीं।
 4. कुछेक लोग होते हैं जो गोरे रंग और सुंदर शरीर को प्राथमिकता देते हैं,ऐसे लोगो से दुरी बनाईये क्योकि ऐसे लोगो को समझाना समय नष्ट करने जैसा हैं।
 5. मन के सरल और परिपक्व समझ वाले लोगो के साथ अपना दायरा बढ़ाये,ये गजब का असर करता है,ये मेरी निजी राय हैं..... परिपक्व और गहरी सोच वाले लोग हमारे व्यक्तित्व को एक दिशा देते हैं।
 6. परिस्थीति कैसी भी हो संयम बनाये रखे।
 7. जिन्दगी रोज सबक सीखाती हैं, सो रोज सीखते रहे ।
 8. अच्छी कहानियाँ पढ़े, कविताएँ पढ़े, फिल्म देखे, घुमने जाये..... वो सब काम करे जो आपके मन को खुशी दे क्योकि दुखी मन में ही दुखी विचार आते हैं।
 9. हो सके तो कभी कभार गीता जरुर पढ़े, धार्मिक पुस्तक के रूप में नहीं जीवन का पाठ सीखाने वाली सर्वश्रेष्ठ किताब के रूप में...... और इसकी गुढ़ता को समझने की कोशिश करे ।
 10. अगर गीता के अध्याय समझ में ना रहे हो तो उपर वाले पॉईंट को दिमाग से निकाल दे😉,बिना गुढ़ता के भी जिन्दगी जी सकते हैं..... नॉट टु वरी... बी ईजी ☺️
 11. सुकरात बेहद कुरूप थे, लेकिन उनकी सीखायी बातें आज भी अमर हैं.....
 12. तन की सुंदरता को आईने मापा करते है जबकि मन की सुंदरता दिलों से मापी जाती हैं।
 13. शारीरिक बनावट किसी भी इंसान की पहचान नहीं हो सकती,उसकी पहचान उसके मन,उसके गुणों और स्वभाव से होती हैं।
 14. अपनेआप को बाहर से सुंदर बनाने के साथ अंदर से भी सुंदर बनाये,जब चेहरे पर फेशियल कराये तो तनिक मन की मलीनता को भी हटा दे...... चमक आ जायेगी चेहरे पर... रियली ।
 15. किसी का भरोसा ना तोड़े,ना कुछ गलत करे और ना ही गलत में सहयोग दे।
 16. अपने व्यवहार को सुंदर बनाये,लोगो से मुस्कुरा कर मिले,लोगो की मदद करे और उनकी खुशियों में शामील हो।
 17. खुले मन से लोगो को सराहे,क्योकि किसी की कामयाबी को पचाना हर किसी के बस की बात नहीं..... लोगो की सफलता पर तालीयाँ बजाना सीखिये।
 18. ऐसा कोई काम ना करे कि आपके मन की खूबसूरती ढ़क जाये।
           
                चतुर नार का कहना हैं कि कभी आत्मचिन्तन करके देखियेगा कि आपका मन कितना सुंदर है
' मन मलीन तन सुंदर कैसे। विष रस भरे कनक घट जैसे।'

Tuesday, May 3, 2016

तोल मोल के बोल

             जिस तरह मौन एक साधना हैं,उसी तरह बोलना भी एक कला हैं। दोनो का अपना अपना महत्व हैं और दोनो का ही उचित प्रयोग हमारे व्यक्तित्व को मुखर बनाता हैं । कहते हैं ना कि कमान से निकला तीर और ज़बान से निकला शब्द कभी लौट नहीं सकते,इसलिये अतिआवश्यक हैं कि हम पहले शब्दों को तोले फिर बोले।
                        कब बोलना हैं और कब नहीं बोलना हैं, अगर यह हमे समझ आ जाये तो कई तरह के फ़सादों से हम बच जायेंगे।अक्सर होता हैं कि हमारी जबान फिसल जाती है और हम गलत समय पर कुछ गलत बोल देते हैं,फिर बाद में पछताते हैं कि काश हमने ना बोला होता।ऐसा हम सबके साथ होता हैं,लेकिन हमे ऐसी बातों से सबक लेना चाहिये और अपनी ज़बान पर लगाम लगाना सीखना चाहिये ।
              वही दूसरी ओर मैंने ऐसे भी लोग देखे हैं जो जानबूझ कर कड़वे शब्दों का प्रयोग करते हैं ,सिर्फ दुसरों को आहत करने के लिये और स्वयं को खरी खरी कहने वाला सिद्ध करते हैं । ऐसे लोग खरी खोटी सुनाकर सिर्फ अपनी भड़ास निकालते हैं। किसी को भी बात बात पर टोकना इनकी आदतों में शुमार होता हैं और कहते हैं कि तुम्हारे भले के लिये टोकते हैं।
               कुछ लोग होते हैं जो बहुत मीठा बोलते हैं,उनके शब्द सीधे गुड़ की फैक्ट्री से आते हैं......अतिमिठास,जिसे सुन कर ही चाटुकारिता का संदेह हो जाता हैं,कम से कम मैं तो ऐसे लोगो को तुरंत भाँप जाती हूँ,एक बार मैंने लिखा भी था......
                              मैं आहत होती हूँ
                            अपनों के रुखे व्यवहार से नहीं
                            बल्कि
                           चाशनी में लिपटी उनकी बातों से ।
    ऐसा नहीं हैं कि मैं बहुत नापतोल के बोलती हूँ,बहुत बार गलत बोलती हूँ,बहुत बार बोलने में जल्दबाजी करती हूँ(जोकि मेरी एक बुरी आदत हैं), कई बार बोलने में अति कर जाती हूँ और अति तो विनाश का कारण हैं ही, लेकिन बोलना हर बार मुझे सीख देता हैं।
        सुधरने की राह पर हम भी हैं, तो चलिये देखते हैं आज चतुर नार के पिटारे से क्या निकलेगा क्योकि इस बार चतुर नार ने होमवर्क ज्यादा किया हैं,गुगल बाबा ने कई बेहतरीन दोहे उपलब्ध कराये है-

1. सधे और सभ्य शब्द आपको लोकप्रिय बनायेंगे।
2. बेवजह तारीफ के पुलींदे मन बाँधीये,बुरा मत बोलिये लेकिन झुठी तारीफ करके अगले को भ्रम में ना डाले।
3. अगर आपका कोई अपना पीड़ा में हैं तो अपने शब्दों से उसकी पीड़ा कम करने का प्रयत्न करे अन्यथा चुप ही रहे,श्रेयस्कर होगा ।
4. किसी बीमार व्यक्ति से मिलने जा रहे हैं तो उसकी बीमारी की गम्भीरता का वर्णन तो कतई ना करे,ना ही ये बखान करे करे कि फलां फलां ने इस बीमारी में ऐसा ऐसा किया था,क्योकि हरेक की परिस्थिति भिन्न होती हैं।
5. किसी परेशान को उचित राह दिखाये लेकिन अपनी राय थोपे नहीं।
6. कठोर शब्दों का प्रयोग कतई ना करे,ऐसे शब्दों को सुनना सामने वाले की मजबूरी हो सकती है लेकिन आप अपना दंभ और सामर्थ्य शब्दों से ना दर्शाये,याद रखिये वक्त सभी का बदलता है।
                    तुलसी मीठे वचन ते,सुख उपजे चहुं ओर।
                     वशीकरण यह मंत्र है,तजीये वचन कठोर ।

   7.   अपने शब्दों से किसी का हौंसलां बढ़ाईये,नई राह दिखाये,घावों का मरहम बने ना कि कटु वचन कहकर दुखती रग को और अधिक गहरा बनाये ध्यान रखे-
                                शब्द' 'शब्द' सब कोई कहे,
                                      'शब्द' के हाथ न पांव;

                                   एक 'शब्द' 'औषधि" करे,
                            और एक 'शब्द' करे 'सौ' 'घाव"...!

8. अपनी बातचीत में सम्माननीय शब्दों से बड़ों को सम्मान दे ,अगर कोई असंगत परम्परा आपको उचित नहीं लगती तो तर्कसंगत उदाहरण देकर सभ्य शब्दों मे विरोध दर्ज कराये और जरुरी नहीं कि आप हर बात माने क्योकि कोई रीति कुरीति भी बन जाती है,तब उसे त्यागना ही श्रेष्ठ होता है, बदलाव लाने के लिये कभी कभी संस्कारों का ज़ामा उतारना जरुरी होता हैं।चतुर नार का मानना हैं कि तर्कसंगत शब्द कभी आपकी छवि को बुरा नहीं बनायेंगे।
9. किसी ओर का इंतजार मत करिये कि वो आपकी लड़ाई लड़े,अपने शब्दों को अपनी ताकत बनाये।
10. छोटों को समझाये, डांटे लेकिन प्यार से,अगर बच्चें भी तर्कसंगत उदाहरण देते हैं,आपको बदलने के लिये, तो जल्दबाजी में विरोध करने की बजाय तनिक सोचे,बच्चों के नजरिये से और चल पड़िये बदलाव की राह पर,क्योकि हम किसी को बदलना चाहते हैं तो हमे भी कही ना कही तो बदलना ही पड़ेगा। सोचिये जरा !
11. मित्र से नाराजगी हैं तो कटु ना बने ,उससे नाराजगी दिखाये क्योकि आपके मित्र पर आपका हक बनता हैं।उसे उलाहने देकर प्यार जताये ना कि ताने मारकर नफरत-
                         ऐसी वाणी बोलिये,मन का आपा खोय
                         औरन को शीतल करै,आपहु शीतल होय

12. ज्ञान बांटते ना फिरे ना ही बेवजह की बहस में हिस्सा ले,अपने आपको आकर्षण का केन्द्र बनाने के चक्कर में चापलुसी ना करे।
13. किसी की भी छवि को बिगाड़ने के लिये या फिर मात्र अपनी ईर्ष्या की आग को शांत करने के लिये अपशब्दों का प्रयोग ना करे।
14. आपके आस पास या आपके परिवार में ही किसी ने कुछ बहुत अच्छा किया हैं तो उसे अहसास कराये कि वो वाकई काबिले तारीफ़ है,यकिन मानिये आपका कद नीचा नहीं होगा बल्कि आप बड़प्पन ही महसूस करेंगे।
15. किसी की तारीफ़ नहीं कर सकते तो कम से कम टांग मत खींचीये क्योकि चतुर नार का मानना है कि अक्सर लोग जब किसी की सफलता पचा नहीं पाते तो किसी ओर की सफलता को बढ़ा चढ़ा कर बताते हैं या फिर अच्छी किस्मत बता कर उसकी सफलता पर पानी फेर देते हैं।
16. अपने अंह की संतुष्टी मात्र के लिये अपनी कठोर जबान से बेवजह बहस कर किसी को नीचा ना दिखाये
                           

                                           प्रभू' को भी पसंद नहीं
                                                 'सख्ती' 'बयान' में,
                                  इसी लिए 'हड्डी' नहीं दी, 'जबान' में.

17. आपके बोल ही आपका मोल कराते हैं,ऐसा बोलिये कि कोई एक बार आपसे मिल ले तो आपके व्यक्तित्व की छाप उस पर पड़ जाये।चतुर नार गुगल बाबा के सौजन्य से कहती है-
                   जग ने मुझको सीख दी,तोल मोल के बोल
                  अब मैं बोलू तोल के , लोग कहे अनमोल ।

Wednesday, April 20, 2016

मौन

                      मौन...... एक ऐसी भाषा जिसकी कोई लिपि नहीं और कोई शब्द नहीं,फिर भी सर्वश्रेष्ठ भाषा।जिसने इस भाषा को समझ लिया,मान लिजिये कि जीवन की गहराई को समझ लिया।जिस तरह से समुद्र की गहराई में छुपे बेशकिमती हीरें मोती पाने के लिये उस गहराई तक उतरना पड़ता हैं बिल्कुल इसी तरह जब हम मौन रहते है तो अपने अन्तर्मन के समुद्र में गोते लगाते हैं और बहूत कुछ अपने मन का ऐसा निकाल लाते है जो अब तक मन के किसी कोने में दफन था।वास्तव में मौन के दौरान हम अपने आप को पुन:र्जीवित करते है। यह एक ऐसी तकनीक है जो हमे रिचार्ज करती है।
                  हालांकि मैं स्वयं बचपन में बहूत बातुनी थी,नि:सन्देह अभी भी हूँ,लेकिन पता नहीं क्यों,ये मौन हमेशा मुझे अपनी तरफ खिंचता हैं।सालों पहले जब मैंने 'आर्ट ऑफ लिविंग ' का कोर्स किया था,तब पहली बार इसका स्वाद चखा था,तब से लेकर आज तक कोशिश ही करती रही हूँ इसमे डूब जाने की,इसमें उतर कर कुछ बेशकिमती पा जाने की........ .....लेकिन मेरी कमजोरी कहिये या फिर मजबूरी,मुझे बोलना ही पड़ता हैं।हाँ इतना जरुर हैं कि इसे पाने की ख्वाहिश ने मुझे मितभाषी तो कुछ हद तक बना ही दिया,अपने आप से मिलने की जुस्तजूं ने मुझे ठोस धरातल भी दे दिया।अब मैं छिछला पानी देखने की बजाय गहराई को सीधे देख सकती हूँ,जब चाहूँ, भीड़ में रह कर भी अपने साथ बनी रहती हूँ और अकेले में पूरी दुनियां महसूस कर सकती हूँ।
          हालांकि पूरे दिन का मौन रखने का मौका तो मैं भी नहीं जुटा पायी हूँ,हाँ,कुछेक घंटें मौन रह कर मौन को जीया है। मौन से मेरा मतलब सिर्फ ना बोलने से ही नहीं हैं,मैंने अक्सर देखा है कि बहूत से लोग मौन के दौरान लिख लिख के वार्तालाप करते है,ढिंढोरा पीटते हैं अपने मौन व्रत का,ऐसे मौन से तो मैं कतई सहमत नहीं।मौन का मतलब बोलने पर लगाम लगाना नहीं हैं बल्कि अपने विचारों पर अपने दिमाग में चल रही उथल पुथल को थोड़ा विराम देने का नाम मौन है।मौन तो एक सरल सी प्रक्रिया है स्वयं को स्वयं से मिलाने की।
              दूसरों से बतियाते हुए हम अक्सर अपनेआप को खो देते हैं और अगर कभी चुप भी रहते है तब भी मन पर वार्तालाप ही हावी रहता है,दिमाग़ उफान मारता रहता हैं।क्रोध और आवेश हमे खोखला बना देते हैं उस वक्त मौन रह कर देखिये।
      समुद्र की आती जाती लहरों का उद्वेग हमे रोमांच तो देता है लेकिन ठहराव नहीं देता,वही दुसरी ओर कलकल बहती एक शांत नदी हमें सुकून देती हैं,ठहराव देती हैं........ बस, यही फर्क है वार्तालाप और मौन में।
        मुझे समझ नहीं आता कि लोग अकेलेपन को डिप्रेसन क्यो मानते है क्योकि मैं तो जब भी अकेली होती हूँ एंजॉय करती हूँ,रिचार्ज होती हूँ,पुन:र्जीवित होती हूँ,कुछ ना कुछ रचती हूँ।
चतुर नार भी मौन की भाषा समझती है,लेकिन उसका मानना हैं कि आज की एकाकी लाईफ में मौन के क्षणों को जीना आसान नहीं है इसलिये पूरे दिन की बजाय कुछ घंटों का मौन भी पर्याप्त है-

1. मौन का मतलब चुप्पी नहीं है।
2. किसी शांत स्थान पर या घर के अपने पसंद के कोने में जाकर अपने विचारों को विराम दे और महसूस करे अपने अन्तर्मन को।
3. मौन नहीं तो कम से कम मितभाषी तो बने।
4. "अधजल गगरी छलकत जाय " कभी भी अपने आप का बखान ना करे ,मौन रहकर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाये।
5. बहस ना करे
6. भीड़ में मौन को प्राथमिकता दे यकीन मानीये आप व्यर्थ के विवादों से बचे रहेंगे।
7. किसी की बात का विरोध करने की बजाय मौन रहकर मुस्कूरा दे।
8. मौन और मेडिटेशन दोनो अलग अलग प्रक्रियाएँ है।
9. मौन आपको रिजेनुएट करता है।
10. मौन के दौरान शोरगुल को नजरअंदाज करे, जरुरी नहीं कि आप काम छोड़ कर बैठ जाये,आप अपने काम करते रहे बिल्कूल 'कूल' रहकर ।
11. भले ही भीड़ में हो या परिवार के संग मौन का साथ आपको खोने नहीं देगा।
12. और जब आप खुद ही खुद के साथ होते है तो दुनियाँ भी आपके साथ चल पड़ती हैं।
              एक बार आप भी इसका स्वाद चख कर देखीये और किसी दिन हम सब साथ मिलकर इस मौन को जीयेंगे,क्या आप मेरा साथ देंगे ?

Wednesday, April 6, 2016

खुशी:आपके भीतर

             जिन्दगी की हर खुशी हमारे अन्दर समायी होती है,बस हम उसे ढ़ुंढ़ नहीं पाते और उसे पाने की जद्दोंजहद में जीवन गुजार देते हैं। बहुत बार जब मैं दुखी होती हूँ तो अपने मन की करती हूँ और वाकई मैं खुश हो जाती हूँ मतलब मन की करना ही खुशी हैं, कम से कम मेरे लिये तो।जब मैं दो पक्तियाँ अपने मन की कागज पर उतारती हूँ तो पूरा दिन खुश रहती हूँ।जरुरी नहीं कि खुशियाँ महंगें कपड़ों में हो,फाईव स्टार हॉटल के खाने में हो,हर साल विदेश यात्रा में हो,रिहायशी एरिया में रहने से हो,हाई सोसायटी में उठने बैठने से हो,यह तो वो नन्हा सा तार है जो अनायास ही आपकी आत्मा को झंकृत कर देती है। हमारे वजूद,हमारे अहसास का जिन्दा रहना ही सही मायनों में सार्थक खुशी हैं बाकि तो सब परिस्थितिनुसार परिवर्तित होने वाले क्षण मात्र है।
                            पिछले पाँच दिनों से बाई पंद्रह दिनों की छुट्टी पर हैं ,काम का भार होने के बावजुद जब मैं सुबह की वॉक पर जाती हूँ तो आते समय पसीने की बूंदों के साथ टपकती थोड़ी सी खुशी भी ले आती हूँ,अपनेआप को नजरअंदाज ना करने की खुशी,अपने लिये जीने की खुशी।
                                जो पसंद आये वो सब करने लगी हूँ मैं,अपनी जिन्दगी को जीने लगी हूँ मैं।बहुत बार मैं अपने आप को गिफ्ट्स देती हूँ,नहीं इंतजार करती किसी का कि कोई आये और खुशियाँ उपहार में दे।घर में सभी का जन्मदिन मनाती हूँ,सरप्राईज देती हूँ और जब मेरा जन्मदिन आता है तो बिल्कुल उम्मीद नही करती कि मुझे भी कोई अचम्भित करे और मैं स्वय ही खुद को पेम्पर कर लेती हूँ। ना केवल जन्मदिन धुमधाम से मनाती हूँ बल्कि सारा डेकॉरेशन भी थीम बना के करती हूँ।
           अपनी उम्र को छुपाती नहीं हूँ।चालीस पार कर गयी हूँ,खुश हूँ इस पड़ाव पर,और ना ही मुझे शौक है अपने से आधी उम्र की दिखने में,कतई नहीं चाहती कि अपनी टीनऐज बेटी की बड़ी बहन जैसी दिखु, चालीस की हूँ और चालीस का ही रूतबा चाहती हूँ।मिडिल ऐज की तकलीफें हालांकि शुरू हो गयी है फिर भी अपनी गरिमा अजीज़ है मुझे।
                जिन्दगी के इस चक्रव्युह में जब,सब उलझ जाता हैं तो मैं और पारस निकल पड़ते है उसे सुलझाने,जब दिमाग घूम जाता है तो मैं और भाभी थोड़ी गहरी दार्शनिक बातें कर लेते है,जब किसी के सहारे की जरूरत हो तो मैं किरण से आशा की किरणों को पा लेती हूँ,जब दिल में शरारत भरी हो तो परिवार के कुछ अजीज लोगों को हंगामा करने बुला लेती हूँ तो कभी अपने नितान्त अकेलेपन से बातें कर एक नया आयाम पा जाती हूँ,और बस ऐसे ही बेवजह खुश रहने की कोशिश करती हूँ।
          चतुर नार का कहना है कि आपको अपनी जिन्द़गी सिर्फ एक बार मिली है, जी लिजिये इसे खुल के कुछ सिम्पल टिप्स के साथ
1. अपने आप को प्राथमिकता देना प्रारम्भ करे।
2. अपने शौक को कभी मत मारीये।
3. अपने परिवार की मर्यादा को समझते हुए हर वो काम करे जो आपको खुशी दे।
4. बातें घुमा फिरा के करने के बजाय सीधे शालीन शब्दों का प्रयोग करे।
5. किताबें पढ़ने की आदत डालीये,ये आपकी बेहतर दोस्त हो सकती है।
6. एक छोटी सी लाईब्रेरी बनाये और कुकिंग से लेकर राजनीति तक ,यात्रा वृतांत से लेकर दर्शन शास्त्र की किताबों को उसमे जगह दे।
7. हँसते रहने की आदत डालीये, आप खुबसूरत दिखेंगी।
8. काम वाली बाई नहीं आई तो तनाव मत पालीये,जितना हो सकता है उतना काम करिये , थक गये है तो शाम का खाना बाहर से ऑर्डर करे 😜
9. मॉरनिंग वॉक,व्यायाम और काम करने की आदत रखे,यकिन मानीये आपका आत्मविश्वास बढ़ जायेगा।
10. आत्मनिर्भरता को तवज्जों दे।
11. भले ही आप हाउस वाईफ हो, अपनेआप को कमतर ना समझे, लागातार प्रयत्नशील बने रहे और अपनी पहचान बनाये रखे।
12. समय के साथ बदलते रहे,आपका आपके के बच्चों के साथ सामंजस्य बना रहेगा।
13. किसी जरूरतमंद की मदद कर के देखिये, आनन्द मिलेगा।
14. रिश्तों और आपसी संबंधों की महत्ता पहचाने,सच्चे रिश्तों के दरमियां खुली किताब बने।
15. कुछ ऊसुल खुद के बनाये और उन्हे लांघने की ईजाजत किसी को ना दे।
                यह आपकी जिन्द़गी है अपने अनुसार जीये, आपसे बेहतर आपकी जिन्द़गी को कोई नहीं जान सकता,चतुर नार भी नहीं ☺️👍🏻

Sunday, March 27, 2016

और मेरे पौधों को आँखें मिल गयी






बैठे बैठे क्या करे
करना है कुछ काम
शुरु करो अंताक्षरी
लेकर प्रभु का नाम
   बचपन में जब भी कभी फ़्री होते थे यही करते थे, लेकिन अब परिस्थितियाँ, हालात और समय  सब बदल गया है, पहली बात तो आज की व्यस्त जिन्दगी में फ़ुर्सत के पल मिलते नहीं और अगर मिलते भी है तो व्हॉट्सऐप और फ़ेसबुक उन्हे पूरी तरह से हथिया लेते है ।
        जाते बसंत और आते फ़ागुन के बीच का मौसम ही कुछ ऐसा होता है जो गहरी वीरानी समेटे आता है, व्यस्त होते हुए भी एक सुनापन मन में गहरे तक उतर जाता
है। ऐसे ही अवसाद भरे मौसम में मैं अपने ड्रॉईंगरुम से खिड़कियों में लगे पौधों को निहार रही थी, वो भी खिले होने के बावजूद बेजान लग रहे थे, लग रहा था जैसे निराशा ओढ़े
हुए हो। तभी मेरे मस्तिष्क में जैसे कोई तरंग सी उठी और अवसाद को छूमंतर करके
हम झुम उठे मैं भी और मेरे पौधें भी..... ☺️
अपने रंगों को बाहर निकाला
प्यारे से शब्दों का साथ दिया 
आ, रंग दूँ मैं तुझे गेरुआ 
किसी को गेरुआ तो किसी को हरा रंगा


प्यारी सी शक्ल दी 
















अब कुछ भी उदास नहीं था 

 ............और इस तरह उदास मन और मौसम को मेरे प्रयासों ने खुशरंग कर दिया.... मेरे पौधे मानो मुस्कूरा रहे थे,आखिर उन्हे आँखें जो मिल गयी थी ।

 चतुर नार का कहना है कि सब कुछ आपके भीतर है सुख भी और दुख भी,बस जरुरत है सही को बाहर निकालने की।
1. समय का सही सदुपयोग करे
2. मंनोरंजन की बजाय अपने अस्तित्व पर ध्यान दे
3. अपने सकारात्मक गुणों की खोज करे
4. व्यस्त रहे,यह सबसे अच्छा तरीका है नकारात्मकता से दूर रहने का
5. कुछ भी करे ,दिल से करे
6. आपके आस पास हर जगह संगीत है ,बस महसूस कीजिये और झुमे
7. याद रखिये,अकेलापन अवसाद नहीं है बल्कि आपका एक बेहतर दोस्त है जिस समय आप अपना निरीक्षण कर सकते है
8. यकिन मानीये जब मैं अकेली रहती हूँ तो बहुत कुछ अच्छा करती हूँ
9. आप भीड़ में रहे या अकेले कोई फर्क नहीं पड़ता ,बस आपको अपने खुद के साथ खड़े रहना है,स्वयं को प्राथमिकता देनी है।

         जाईये,जी लीजिये अपने आप को,चतुर नार की शुभकामनायें आपके साथ है ।सिर्फ पौधों को ही नहीं अपनी पूरी जिन्दगी को नयी रोशनी दिखाईये ।






























Thursday, March 17, 2016

मायका

मायका, एक मिठास भरा शब्द जो जिन्द़गी को चाशनी सा बना देता है। कल ही मायके से लौटी हूँ सो चाशनी से लबालब है जीवन। हालांकि माँ के बिना क्या मायका......लेकिन फिर भी जब हर कोने में माँ की यादें बसी हो,हर आहट में माँ की पदचाप हो और ओढ़ने की चादर में माँ की खुशबू हो तो फिर माँ की कमी कहाँ ? वैसे भी चतुर नार, जो खो चुका है उसमे दुखी होने की बजाय जो रह गया है उसे संजोने में ज्यादा विश्वास रखती है,बस वैसे ही माँ की यादों से सजे पीहर में खुशगवार पल बिता कर आई हूँ मैं ।
              मायके की तो हर बात ही जीवंत होती है,हर तरफ बस मान मनुहार।बात सिर्फ मेरे घर की नहीं हैं, बात मेरे पूरे मायके की है, गली-मौहल्ले, दुकान और दुकानदारों की हैं,सुबह की पूरवाई और शाम की है,दादा दादी के स्नेह और लाड़ की है, जहाँ गुजरा था बचपन उन गली गलियारों की हैं,यहाँ बात हर नन्हे से पल की हैं।
               पिछले दो दशकों में बहुत कुछ बदल गया,मेरा शहर सिटी बन गया,गलीयाँ सड़क बन गयी,मेरा स्कुल नयी ईमारत मे तब्दील हो गया,साथ पढ़े थे जो चेहरे वो बदल बदल से गये लेकिन फिर भी मायका तो मायका हैं बिल्कुल पहले जैसा, हर बार मीठा अहसास।
                       बचपन में जिन गलियों से हो कर स्कुल जाया करती थी भले ही उनके रूप रंग बदल गये हो, लेकिन आज भी वे गलियाँ बचपन की यादें ताजा कर देती हैं। घर के आस पास की दुकानें आज भी वैसी ही है,हाँ चेहरे मोहरे जरुर बदल गये है ,लेकिन जो नहीं बदला,वो हैं स्नेह उनकी आँखों का । जब उन दुकानों पर जाती हूँ तो बड़े ही अपनेपन से दिल खोल देते हैं जैसे बिटीया उन्ही के घर आयी हो। मेरे बच्चें साथ होते हैं तो उनके बारे में पूछते हैं कि कौनसी कक्षा में पढ़ते है वैगरह वैगरह, फिर बच्चें मुझसे पुछते हैं कि ये आपके रिश्तेदार है क्या और जब मैं बताती हूँ कि नहीं, मैं बचपन में इनकी दुकान पर आती थी बस,तो वे आश्चर्यचकित रह जाते है.......😊 यह होता है मायका।
           साड़ीयाँ खरीदने जाती हूँ तो पहले तो हालचाल पुछा जाता हैं यहाँ तक कि कंवरसाहब के भी हालचाल पुछ लिये जाते है फिर बड़े ही मान मनुहार से साड़ीयाँ दिखाई जाती है और कभी पैसे कम पड़ जाते है तो बोला जाता है कि पैसे किसने मांगे हैं, साड़ी पसंद हैं ना लेकर जा ...... यह होता है मायका।
            रास्ते में कही सहेली के मम्मी पापा या भाई भाभी मिल जाते है तो ऐसा लाड़ मिलता है कि मेरे शहरी बच्चें स्तब्ध रह जाते है 😜। पड़ौस के मंदिर में जाती हूँ तो आज भी प्रसाद ज्यादा मिलता है।यहाँ तक की महरिन भी हक जता के पुछ लेती है कि बिटीयाँ कब तक रुकोगी और मैं भी सस्नेह उन्हे दादी ताई ही संबोधन देती हूँ..... यह होता है मायका।
       यहाँ तक की पड़ौस में पानी पूरी वाला भी मायके वाला अहसास दे देता है , कोई गिनती नहीं , अगर मीरा ( भतीजी ) को एक और पूरी चाहिये तो वो अपने आप उनके ठेले से उठा सकती है। पानी पूरी हो या आलु की टिकियां हर चीज ज्यादा स्वादिष्ट बना के दी जाती हैं , चटनियों के साथ स्नेह भी परोसा जाता है...... यह होता है मायका।
           हर जगह सिर्फ मनुहार ही मनुहार ,कोई पराया नहीं सिर्फ अपनापन,स्नेह,लाड़ और दुलार...... यही है मायके की फ़ितरत।
          "चतुर नार" भी आज मुक हैं क्योकि मायके में रहने के कोई कायदे कानुन नहीं , यह आपका अधिकार है जिसे आप जैसे चाहे जी सकते है।

Monday, March 7, 2016

वुमेनंस डे

आज महिला दिवस है.... विश्व की समस्त महिलाओं को समर्पित दिन। सुबह से ही व्हॉट्स अप पर महिला शक्ती से प्रेरित संदेशों की भरमार हो रही है ,खुशी होती है कि हम जागरूक है अपने अधिकारों को लेकर लेकिन क्या हर दिन हमारा नहीं होता ? विचारणीय प्रश्न है.........
                                    एक और बात, मैंने नोटिस किया कि हर संदेश में एक माँ, एक बहन, एक पत्नि,एक बेटी के रुप को ही चित्रित किया गया था,माना कि ये सारे रुप हमे ताकतवर बनाते है लेकिन इन सब के ऊपर हमारा कोई वजुद नहीं ? विचारणीय प्रश्न है..............
                                                                                  सोचिये जरा, ये सारे रिश्ते महिलाओं की त्याग वाली भावनाओं से संबंधित है, माँ की छवि बच्चों को समर्पित,बहन...भाई की खुशियों पे वारी,पत्नि....पति की पथगामीनी,बेटी...एक नाजुक सी बेल जो पिता रुपी पेड़ के सहारे बढ़ती है, हालांकि मैं स्वयं भी इन्ही रुपों को महत्ता देती हूँ ,मेरा परिवार मेरी प्राथमिकता है लेकिन कभी कभी सोच मुझे दुसरी ओर ले जाती है, इन सब से परे मेरे स्त्रीत्व का क्या ? विचारणीय प्रश्न है.............
               सारे दिन की दौड़ धुप के बाद अगर किसी भी जिम्मेदारी को निभाने में कही कोई कमी रह जाती है तो मैं ग्लानी भाव से भर जाती हूँ क्योकि मैं एक स्त्री के समस्त रुपों का तो प्रतिनिधित्व करती हूँ लेकिन अपने स्वं से पूर्णतया अनजान हूँ। असल में हमारी खुशी हमारे से जुड़े रिश्तों पर आधारित है । आपके बच्चें बहुमूखी प्रतिभा के धनी है तो आप एक समर्पित माँ है,पति खुश है तो आप सही मायनों में अर्द्धांगनी है, सास ससुर खुश है तो आप एक आदर्श बहु है और अगर आप एक सामाजिक कार्यकर्त्ता भी है तो नि:संदेह आप सर्वगुण सम्पन्न है। लेकिन इन सब के बीच एक स्त्री कहाँ है ? विचारणीय प्रश्न है.............
                                  अगर हम अपने रिश्तों से खुश है तो हम महिला दिवस मनाते है, बिल्कुल ऐसा ही मेरे साथ है,मेरा हर रिश्ता खुबसूरत है , पापा गर्वित होते है, पति मेरी हर ईच्छा को सम्मान देते है, बच्चें मुझसे सलाह लेते है , परिवार में मेरी राय को तवज्जों दी जाती है......मेरा हर महिला दिवस शानदार जाता है लेकिन क्या मेरी काम वाली बाई या कोई भी ओर महिला जिसे अपने रिश्तों से स्नेह नहीं मिल रहा, महिला दिवस को शानदार बना पाती हैं ? विचारणीय प्रश्न है...........
       चतुर नार का मानना है कि ये एक लंबी बहस है, थोड़ी बहुत बातें है जिन्हे व्यवहार में लाकर हम अपने स्त्रीत्व के जी सकते है........
1. कभी कभी खुद के लिये अगर कुछ नजरअंदाज करना पड़े तो कीजिये ।
2. आपको फिल्म देखनी है और आपके कक्षा पाँच में पढ़ने वाले बच्चें की ट्युशन क्लास है , क्या करेंगे ? चतुर नार का मानना है कि आप फिल्म देखने जाईये ग्लानी भाव को निकालकर।एक दिन क्लास मिस होने से कुछ नहीं होगा क्योकि आगे के जीवन में इससे भी अधिक महत्वपूर्ण निर्णय लेने पड़ेंगे।
3. कभी कभी परिवार के बिना अकेले जीवन जीने को मन करता है, पैकिंग कीजिये और निकल चलीये अपनी सहेलियों के साथ, बहुत मज़ा आयेगा , मेरा व्यक्तिगत अनुभव है।
4. जरूरी नहीं कि हर बात पति से पूछ कर की जाये।
5. हर रोज स्वयं के लिये एक घंटा निकाले, नो फैमेली,नो बच्चें नो रिश्तेदारी सिर्फ और सिर्फ आप ।
6. जो बातें पसंद नहीं है उन्हे स्पष्ट शब्दों में कहना सीखे।
7. हमेशा आप ही क्यों बदले ,अपने आस पास के लोगो को भी बदलना सीखाईये।
8. परिस्थतियों के अनुसार बदलना आपकी समझ बुझ है लेकिन परिस्थतियों को अपने अनुसार बदलना आपके आत्मविश्वास की पहचान है ।
9. जीवन की प्राथमिकताओं को क्रम में रखिये अगर कुछ बहुत इम्पोर्टेंट नहीं है तो त्याग वाली भावना को गोली मारीये 😜
10. किसी से भी प्रतिस्पर्धा मत किजीये और इस बात की तो बिल्कुल भी नहीं कि मैं एक सुपर वुमन हूँ , हरेक महिला सुपर वूमन है ,हर एक का सम्मान कीजिये, खुद को साबित करने के चक्कर में आप बहुत कुछ खो देगे
11. हर पल को सहेज कर रखिये क्या पता यादों के पिटारे से क्या निकल जाये।
12. औपचारिकताओं में जीना बंद करे।

                 हर दिन महिला का है इसे मनाईये और खुश रहिये और फख्र महसुस करते रहे अपने आप पर । आप सिर्फ माँ,बहन, बेटी या बहु ही नहीं है आप पुरी सृष्टी है ।

Thursday, March 3, 2016

सुबह की सैर

सुबह की सैर युँ तो सबके बस की बात नहीं,पर जो लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरूक है, वे भली भाँति इसके फायदों से परिचित है।वैसे तो ये कोई नयी बात भी नहीं है, पुरातन काल से ही प्रात:कालीन भ्रमण की महत्ता बतायी गई है, लेकिन आज के समय में इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है, सुबह का आधा घंटा आपका पुरा दिन खुशमय बना सकता है ऐसा मेरा अपना निजी अनुभव है।
      "चतुर नार" का मानना है कि सुर्योदय के पहले उठना और सैर पर जाना , आपने दिन की सबसे अच्छी शुरुआत है और अगर साथ में आपका पसंदीदा व्यक्तित्व हो तो यह सोने पे सुहागा। माना कि आज की भाग दौड़ वाली जिन्दगी में जल्दी बिस्तर पर जाना आसान नहीं है,लेकिन यक़िन मानिये एक बार आपको जल्दी उठने की आदत हो जायेगी तो आप खुद-ब-खुद इसके फायदों से रूबरू हो जायेगे ।
चतुर नार ने सुबह की सैर के कुछ फायदे गिनाये है जो व्यवहारिक तौर पर अनुभव किये जा सकते है -

1. अगर आप 6000 कदम रोज चलते है तो आपकी सेहत में आश्चर्यजनक बदलाव आयेगा ।
2. सुबह की प्रदुषण मुक्त हवा आपके तन ही नहीं मन को भी प्रसन्न कर देगी।
3. अगर मॉरनिंग वॉक पर आप अपने हमसफ़र के साथ है तो समझ लीजिये कि आपका रोमांस कभी खत्म नहीं होगा।
4. सुबह की सैर आपका आत्मविश्वास बढ़ाती हैं।
5. सैर करने आये लोगों की तादात देखकर आप गर्व का अनुभव करेंगे कि आप भी उनमे से एक है।
6. मॉरनिंग वॉक के बाद आप पूरा दिन घर पर ही स्फुर्ति महसुस करेंगे।
7. सुबह आधा घंटा जल्दी उठने से आप दोपहर को दो घंटें बचा पाते है,क्योकि सुबह हमारा एनर्जी लेवल अधिक होता है इसलिये हम ज्यादा सुचारु रुप से अधिक काम कर पाते हैं ।
8. चतुर नार को बहुत बार मॉरनिंग वॉक पर ऐसा लगता है कि उसके फेफड़ों में ताजगी की हवा भर गयी 😜
9. अनियमित महावारी नियमित आने लगती है।
10. चिड़चिड़ाहट और डिप्रेशन कम हो जाता है,जिन्दादिली बढ़ जाती हैं और आप खुश रहने लगते है।
11. सुबह जल्दी उठकर एक वॉक लेने के बाद आप इतना तरोताजा महसूस करेंगे कि पूरे दिन करने वाले कामों की रूपरेखा बनाकर उन्हे सफल तरीके से कार्यान्वित कर सकेगे।
12. निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है।
13. सुबह के शांत एवं शुद्ध वातावरण को देखकर अहसास होता है कि हम नींद में इन पलों से महरुम रह रहे थे।        
             
             आपकी पसंदीदा सड़क हो,ताजी आबोहवा हो,जुतों के लेस टाईट बंधे हो और मन से आप अपने साथ हो फिर देखीये ये मॉरनिंग वॉक आपको क्या क्या सौगातें देती है,बस एक बार लुत्फ उठा कर तो देखिये।

    

Tuesday, March 1, 2016

चतुर नार

चतुर नार की प्रथम पोस्ट पर आप सभी का स्वागत है । चतुर नार एक स्त्री का प्रतिनिधित्व करती है जिसे जीवन की हरेक कठिनाईयों से पार उतरना है, वो अपना घर परिवार संभालती है , ना सिर्फ बच्चों का बल्कि अपनी सेहत का भी ध्यान रखती है,अपनी बेबाक राय व्यक्त करती हैं,सजती है, संवरती है,नये फैशन टिप्स भी देती है ..... क्योकि स्टाईल में रहना उसे अच्छा लगता है ...... बस, ऐसी ही है हमारी चतुर नार । देखना यह है कि वो सबकी कसौटी पर खरी उतरती है कि नहीं ।