Saturday, May 28, 2016

सुंदरता

सुंदरता

एक राजा को अपने लिए सेवक की आवश्यकता थी। उसके मंत्री ने दो दिनों के बाद एक योग्य व्यक्ति को राजा के सामने पेश किया। राजा ने उसे अपना सेवक बना तो लिया, पर बाद में मंत्री से कहा, 'वैसे तो यह आदमी ठीक है पर इसका रंग-रूप अच्छा नहीं है।' मंत्री को यह बात अजीब लगी पर वह चुप रहा। एक बार गर्मी के मौसम में राजा ने उस सेवक को पानी लाने के लिए कहा। सेवक सोने के पात्र में पानी लेकर आया। लेकिन राजा ने जब पानी पिया तो पानी पीने में थोड़ा गर्म लगा। राजा ने कुल्ला करके फेंक दिया। वह बोला, 'इतना गर्म पानी, वह भी गर्मी के इस मौसम में, तुम्हें इतनी भी समझ नहीं।' मंत्री यह सब देख रहा था।

मंत्री ने उस सेवक को मिट्टी के पात्र में पानी लाने को कहा। राजा ने यह पानी पीकर तृप्ति का अनुभव किया। मंत्री ने राजा से पूछा, 'महाराज, सोने के पात्र का पानी आपको अच्छा नहीं लगा। लेकिन मिट्टी के पात्र का पानी क्यों अच्छा लगा?' राजा मौन रहा। इस पर मंत्री ने कहा, 'महाराज, बाहर को नहीं, भीतर को देखें। सोने का पात्र सुंदर, मूल्यवान और अच्छा है, लेकिन शीतलता प्रदान करने का गुण इसमें नहीं है। मिट्टी का पात्र अत्यंत साधारण है, लेकिन इसमें ठंडा बना देने की क्षमता है। कोरे रंग-रूप को न देखकर, गुण को देखें।' उस दिन से राजा का नजरिया बदल गया।
    चाणक्य ने भी कहा हैं कि मनुष्य गुणों से उत्तम बनता हैं,ओहदे से नहीं।तन की सुंदरता पहली नजर में किसी को भी लुभा सकती हैं लेकिन मन की सुंदरता अपनी छाप छोड़ देती हैं।माना कि सुंदरता आकर्षित करती हैं और मौकें भी दिलाती हैं..... लेकिन इसका समय सीमित होता हैं,बाहरी सुंदरता क्षणिक भ्रम होता है जो उम्र के साथ ढ़ल जायेगा, लेकिन अगर आपका मन निष्कपट हैं,आप चिन्ता नहीं चिन्तन करते हैं तो उसका ओज आपके चेहरे पर झलकेगा और सालों साल आपको युवा और उर्जामय रखेगा। क्या फायदा ऐसी सुंदरता का जिसमे स्वार्थ और दंभ की बू आती हो । तीखे नैन नक्श हमे सुंदर नहीं बनाते बल्कि हमारी सोच,हमारे तौर तरीके,हमारा व्यवहार हमे सुंदर बनाते हैं..........इसलिये बाहरी सुंदरता की बजाय आंतरिक सुंदरता का पोषण आवश्यक हैं । चतुर नार तो सदैव ही मन की सुंदरता के महत्व को जानती बुझती आयी हैं........

 1. मुखौटा लगाने की कोशिश ना करे,अपनी सोच और अपने विचारों का स्तर बढ़ाये ।
 2. मेकअप से अपनी खामियों को ना छुपाये बल्कि अपने गुणों से अपने व्यक्तित्व को मुखर बनाये।
 3. बी ओरिजनल...... जैसे हैं वैसे रहे,सरल बने जटिल नहीं।
 4. कुछेक लोग होते हैं जो गोरे रंग और सुंदर शरीर को प्राथमिकता देते हैं,ऐसे लोगो से दुरी बनाईये क्योकि ऐसे लोगो को समझाना समय नष्ट करने जैसा हैं।
 5. मन के सरल और परिपक्व समझ वाले लोगो के साथ अपना दायरा बढ़ाये,ये गजब का असर करता है,ये मेरी निजी राय हैं..... परिपक्व और गहरी सोच वाले लोग हमारे व्यक्तित्व को एक दिशा देते हैं।
 6. परिस्थीति कैसी भी हो संयम बनाये रखे।
 7. जिन्दगी रोज सबक सीखाती हैं, सो रोज सीखते रहे ।
 8. अच्छी कहानियाँ पढ़े, कविताएँ पढ़े, फिल्म देखे, घुमने जाये..... वो सब काम करे जो आपके मन को खुशी दे क्योकि दुखी मन में ही दुखी विचार आते हैं।
 9. हो सके तो कभी कभार गीता जरुर पढ़े, धार्मिक पुस्तक के रूप में नहीं जीवन का पाठ सीखाने वाली सर्वश्रेष्ठ किताब के रूप में...... और इसकी गुढ़ता को समझने की कोशिश करे ।
 10. अगर गीता के अध्याय समझ में ना रहे हो तो उपर वाले पॉईंट को दिमाग से निकाल दे😉,बिना गुढ़ता के भी जिन्दगी जी सकते हैं..... नॉट टु वरी... बी ईजी ☺️
 11. सुकरात बेहद कुरूप थे, लेकिन उनकी सीखायी बातें आज भी अमर हैं.....
 12. तन की सुंदरता को आईने मापा करते है जबकि मन की सुंदरता दिलों से मापी जाती हैं।
 13. शारीरिक बनावट किसी भी इंसान की पहचान नहीं हो सकती,उसकी पहचान उसके मन,उसके गुणों और स्वभाव से होती हैं।
 14. अपनेआप को बाहर से सुंदर बनाने के साथ अंदर से भी सुंदर बनाये,जब चेहरे पर फेशियल कराये तो तनिक मन की मलीनता को भी हटा दे...... चमक आ जायेगी चेहरे पर... रियली ।
 15. किसी का भरोसा ना तोड़े,ना कुछ गलत करे और ना ही गलत में सहयोग दे।
 16. अपने व्यवहार को सुंदर बनाये,लोगो से मुस्कुरा कर मिले,लोगो की मदद करे और उनकी खुशियों में शामील हो।
 17. खुले मन से लोगो को सराहे,क्योकि किसी की कामयाबी को पचाना हर किसी के बस की बात नहीं..... लोगो की सफलता पर तालीयाँ बजाना सीखिये।
 18. ऐसा कोई काम ना करे कि आपके मन की खूबसूरती ढ़क जाये।
           
                चतुर नार का कहना हैं कि कभी आत्मचिन्तन करके देखियेगा कि आपका मन कितना सुंदर है
' मन मलीन तन सुंदर कैसे। विष रस भरे कनक घट जैसे।'

Tuesday, May 3, 2016

तोल मोल के बोल

             जिस तरह मौन एक साधना हैं,उसी तरह बोलना भी एक कला हैं। दोनो का अपना अपना महत्व हैं और दोनो का ही उचित प्रयोग हमारे व्यक्तित्व को मुखर बनाता हैं । कहते हैं ना कि कमान से निकला तीर और ज़बान से निकला शब्द कभी लौट नहीं सकते,इसलिये अतिआवश्यक हैं कि हम पहले शब्दों को तोले फिर बोले।
                        कब बोलना हैं और कब नहीं बोलना हैं, अगर यह हमे समझ आ जाये तो कई तरह के फ़सादों से हम बच जायेंगे।अक्सर होता हैं कि हमारी जबान फिसल जाती है और हम गलत समय पर कुछ गलत बोल देते हैं,फिर बाद में पछताते हैं कि काश हमने ना बोला होता।ऐसा हम सबके साथ होता हैं,लेकिन हमे ऐसी बातों से सबक लेना चाहिये और अपनी ज़बान पर लगाम लगाना सीखना चाहिये ।
              वही दूसरी ओर मैंने ऐसे भी लोग देखे हैं जो जानबूझ कर कड़वे शब्दों का प्रयोग करते हैं ,सिर्फ दुसरों को आहत करने के लिये और स्वयं को खरी खरी कहने वाला सिद्ध करते हैं । ऐसे लोग खरी खोटी सुनाकर सिर्फ अपनी भड़ास निकालते हैं। किसी को भी बात बात पर टोकना इनकी आदतों में शुमार होता हैं और कहते हैं कि तुम्हारे भले के लिये टोकते हैं।
               कुछ लोग होते हैं जो बहुत मीठा बोलते हैं,उनके शब्द सीधे गुड़ की फैक्ट्री से आते हैं......अतिमिठास,जिसे सुन कर ही चाटुकारिता का संदेह हो जाता हैं,कम से कम मैं तो ऐसे लोगो को तुरंत भाँप जाती हूँ,एक बार मैंने लिखा भी था......
                              मैं आहत होती हूँ
                            अपनों के रुखे व्यवहार से नहीं
                            बल्कि
                           चाशनी में लिपटी उनकी बातों से ।
    ऐसा नहीं हैं कि मैं बहुत नापतोल के बोलती हूँ,बहुत बार गलत बोलती हूँ,बहुत बार बोलने में जल्दबाजी करती हूँ(जोकि मेरी एक बुरी आदत हैं), कई बार बोलने में अति कर जाती हूँ और अति तो विनाश का कारण हैं ही, लेकिन बोलना हर बार मुझे सीख देता हैं।
        सुधरने की राह पर हम भी हैं, तो चलिये देखते हैं आज चतुर नार के पिटारे से क्या निकलेगा क्योकि इस बार चतुर नार ने होमवर्क ज्यादा किया हैं,गुगल बाबा ने कई बेहतरीन दोहे उपलब्ध कराये है-

1. सधे और सभ्य शब्द आपको लोकप्रिय बनायेंगे।
2. बेवजह तारीफ के पुलींदे मन बाँधीये,बुरा मत बोलिये लेकिन झुठी तारीफ करके अगले को भ्रम में ना डाले।
3. अगर आपका कोई अपना पीड़ा में हैं तो अपने शब्दों से उसकी पीड़ा कम करने का प्रयत्न करे अन्यथा चुप ही रहे,श्रेयस्कर होगा ।
4. किसी बीमार व्यक्ति से मिलने जा रहे हैं तो उसकी बीमारी की गम्भीरता का वर्णन तो कतई ना करे,ना ही ये बखान करे करे कि फलां फलां ने इस बीमारी में ऐसा ऐसा किया था,क्योकि हरेक की परिस्थिति भिन्न होती हैं।
5. किसी परेशान को उचित राह दिखाये लेकिन अपनी राय थोपे नहीं।
6. कठोर शब्दों का प्रयोग कतई ना करे,ऐसे शब्दों को सुनना सामने वाले की मजबूरी हो सकती है लेकिन आप अपना दंभ और सामर्थ्य शब्दों से ना दर्शाये,याद रखिये वक्त सभी का बदलता है।
                    तुलसी मीठे वचन ते,सुख उपजे चहुं ओर।
                     वशीकरण यह मंत्र है,तजीये वचन कठोर ।

   7.   अपने शब्दों से किसी का हौंसलां बढ़ाईये,नई राह दिखाये,घावों का मरहम बने ना कि कटु वचन कहकर दुखती रग को और अधिक गहरा बनाये ध्यान रखे-
                                शब्द' 'शब्द' सब कोई कहे,
                                      'शब्द' के हाथ न पांव;

                                   एक 'शब्द' 'औषधि" करे,
                            और एक 'शब्द' करे 'सौ' 'घाव"...!

8. अपनी बातचीत में सम्माननीय शब्दों से बड़ों को सम्मान दे ,अगर कोई असंगत परम्परा आपको उचित नहीं लगती तो तर्कसंगत उदाहरण देकर सभ्य शब्दों मे विरोध दर्ज कराये और जरुरी नहीं कि आप हर बात माने क्योकि कोई रीति कुरीति भी बन जाती है,तब उसे त्यागना ही श्रेष्ठ होता है, बदलाव लाने के लिये कभी कभी संस्कारों का ज़ामा उतारना जरुरी होता हैं।चतुर नार का मानना हैं कि तर्कसंगत शब्द कभी आपकी छवि को बुरा नहीं बनायेंगे।
9. किसी ओर का इंतजार मत करिये कि वो आपकी लड़ाई लड़े,अपने शब्दों को अपनी ताकत बनाये।
10. छोटों को समझाये, डांटे लेकिन प्यार से,अगर बच्चें भी तर्कसंगत उदाहरण देते हैं,आपको बदलने के लिये, तो जल्दबाजी में विरोध करने की बजाय तनिक सोचे,बच्चों के नजरिये से और चल पड़िये बदलाव की राह पर,क्योकि हम किसी को बदलना चाहते हैं तो हमे भी कही ना कही तो बदलना ही पड़ेगा। सोचिये जरा !
11. मित्र से नाराजगी हैं तो कटु ना बने ,उससे नाराजगी दिखाये क्योकि आपके मित्र पर आपका हक बनता हैं।उसे उलाहने देकर प्यार जताये ना कि ताने मारकर नफरत-
                         ऐसी वाणी बोलिये,मन का आपा खोय
                         औरन को शीतल करै,आपहु शीतल होय

12. ज्ञान बांटते ना फिरे ना ही बेवजह की बहस में हिस्सा ले,अपने आपको आकर्षण का केन्द्र बनाने के चक्कर में चापलुसी ना करे।
13. किसी की भी छवि को बिगाड़ने के लिये या फिर मात्र अपनी ईर्ष्या की आग को शांत करने के लिये अपशब्दों का प्रयोग ना करे।
14. आपके आस पास या आपके परिवार में ही किसी ने कुछ बहुत अच्छा किया हैं तो उसे अहसास कराये कि वो वाकई काबिले तारीफ़ है,यकिन मानिये आपका कद नीचा नहीं होगा बल्कि आप बड़प्पन ही महसूस करेंगे।
15. किसी की तारीफ़ नहीं कर सकते तो कम से कम टांग मत खींचीये क्योकि चतुर नार का मानना है कि अक्सर लोग जब किसी की सफलता पचा नहीं पाते तो किसी ओर की सफलता को बढ़ा चढ़ा कर बताते हैं या फिर अच्छी किस्मत बता कर उसकी सफलता पर पानी फेर देते हैं।
16. अपने अंह की संतुष्टी मात्र के लिये अपनी कठोर जबान से बेवजह बहस कर किसी को नीचा ना दिखाये
                           

                                           प्रभू' को भी पसंद नहीं
                                                 'सख्ती' 'बयान' में,
                                  इसी लिए 'हड्डी' नहीं दी, 'जबान' में.

17. आपके बोल ही आपका मोल कराते हैं,ऐसा बोलिये कि कोई एक बार आपसे मिल ले तो आपके व्यक्तित्व की छाप उस पर पड़ जाये।चतुर नार गुगल बाबा के सौजन्य से कहती है-
                   जग ने मुझको सीख दी,तोल मोल के बोल
                  अब मैं बोलू तोल के , लोग कहे अनमोल ।