Tuesday, May 3, 2016

तोल मोल के बोल

             जिस तरह मौन एक साधना हैं,उसी तरह बोलना भी एक कला हैं। दोनो का अपना अपना महत्व हैं और दोनो का ही उचित प्रयोग हमारे व्यक्तित्व को मुखर बनाता हैं । कहते हैं ना कि कमान से निकला तीर और ज़बान से निकला शब्द कभी लौट नहीं सकते,इसलिये अतिआवश्यक हैं कि हम पहले शब्दों को तोले फिर बोले।
                        कब बोलना हैं और कब नहीं बोलना हैं, अगर यह हमे समझ आ जाये तो कई तरह के फ़सादों से हम बच जायेंगे।अक्सर होता हैं कि हमारी जबान फिसल जाती है और हम गलत समय पर कुछ गलत बोल देते हैं,फिर बाद में पछताते हैं कि काश हमने ना बोला होता।ऐसा हम सबके साथ होता हैं,लेकिन हमे ऐसी बातों से सबक लेना चाहिये और अपनी ज़बान पर लगाम लगाना सीखना चाहिये ।
              वही दूसरी ओर मैंने ऐसे भी लोग देखे हैं जो जानबूझ कर कड़वे शब्दों का प्रयोग करते हैं ,सिर्फ दुसरों को आहत करने के लिये और स्वयं को खरी खरी कहने वाला सिद्ध करते हैं । ऐसे लोग खरी खोटी सुनाकर सिर्फ अपनी भड़ास निकालते हैं। किसी को भी बात बात पर टोकना इनकी आदतों में शुमार होता हैं और कहते हैं कि तुम्हारे भले के लिये टोकते हैं।
               कुछ लोग होते हैं जो बहुत मीठा बोलते हैं,उनके शब्द सीधे गुड़ की फैक्ट्री से आते हैं......अतिमिठास,जिसे सुन कर ही चाटुकारिता का संदेह हो जाता हैं,कम से कम मैं तो ऐसे लोगो को तुरंत भाँप जाती हूँ,एक बार मैंने लिखा भी था......
                              मैं आहत होती हूँ
                            अपनों के रुखे व्यवहार से नहीं
                            बल्कि
                           चाशनी में लिपटी उनकी बातों से ।
    ऐसा नहीं हैं कि मैं बहुत नापतोल के बोलती हूँ,बहुत बार गलत बोलती हूँ,बहुत बार बोलने में जल्दबाजी करती हूँ(जोकि मेरी एक बुरी आदत हैं), कई बार बोलने में अति कर जाती हूँ और अति तो विनाश का कारण हैं ही, लेकिन बोलना हर बार मुझे सीख देता हैं।
        सुधरने की राह पर हम भी हैं, तो चलिये देखते हैं आज चतुर नार के पिटारे से क्या निकलेगा क्योकि इस बार चतुर नार ने होमवर्क ज्यादा किया हैं,गुगल बाबा ने कई बेहतरीन दोहे उपलब्ध कराये है-

1. सधे और सभ्य शब्द आपको लोकप्रिय बनायेंगे।
2. बेवजह तारीफ के पुलींदे मन बाँधीये,बुरा मत बोलिये लेकिन झुठी तारीफ करके अगले को भ्रम में ना डाले।
3. अगर आपका कोई अपना पीड़ा में हैं तो अपने शब्दों से उसकी पीड़ा कम करने का प्रयत्न करे अन्यथा चुप ही रहे,श्रेयस्कर होगा ।
4. किसी बीमार व्यक्ति से मिलने जा रहे हैं तो उसकी बीमारी की गम्भीरता का वर्णन तो कतई ना करे,ना ही ये बखान करे करे कि फलां फलां ने इस बीमारी में ऐसा ऐसा किया था,क्योकि हरेक की परिस्थिति भिन्न होती हैं।
5. किसी परेशान को उचित राह दिखाये लेकिन अपनी राय थोपे नहीं।
6. कठोर शब्दों का प्रयोग कतई ना करे,ऐसे शब्दों को सुनना सामने वाले की मजबूरी हो सकती है लेकिन आप अपना दंभ और सामर्थ्य शब्दों से ना दर्शाये,याद रखिये वक्त सभी का बदलता है।
                    तुलसी मीठे वचन ते,सुख उपजे चहुं ओर।
                     वशीकरण यह मंत्र है,तजीये वचन कठोर ।

   7.   अपने शब्दों से किसी का हौंसलां बढ़ाईये,नई राह दिखाये,घावों का मरहम बने ना कि कटु वचन कहकर दुखती रग को और अधिक गहरा बनाये ध्यान रखे-
                                शब्द' 'शब्द' सब कोई कहे,
                                      'शब्द' के हाथ न पांव;

                                   एक 'शब्द' 'औषधि" करे,
                            और एक 'शब्द' करे 'सौ' 'घाव"...!

8. अपनी बातचीत में सम्माननीय शब्दों से बड़ों को सम्मान दे ,अगर कोई असंगत परम्परा आपको उचित नहीं लगती तो तर्कसंगत उदाहरण देकर सभ्य शब्दों मे विरोध दर्ज कराये और जरुरी नहीं कि आप हर बात माने क्योकि कोई रीति कुरीति भी बन जाती है,तब उसे त्यागना ही श्रेष्ठ होता है, बदलाव लाने के लिये कभी कभी संस्कारों का ज़ामा उतारना जरुरी होता हैं।चतुर नार का मानना हैं कि तर्कसंगत शब्द कभी आपकी छवि को बुरा नहीं बनायेंगे।
9. किसी ओर का इंतजार मत करिये कि वो आपकी लड़ाई लड़े,अपने शब्दों को अपनी ताकत बनाये।
10. छोटों को समझाये, डांटे लेकिन प्यार से,अगर बच्चें भी तर्कसंगत उदाहरण देते हैं,आपको बदलने के लिये, तो जल्दबाजी में विरोध करने की बजाय तनिक सोचे,बच्चों के नजरिये से और चल पड़िये बदलाव की राह पर,क्योकि हम किसी को बदलना चाहते हैं तो हमे भी कही ना कही तो बदलना ही पड़ेगा। सोचिये जरा !
11. मित्र से नाराजगी हैं तो कटु ना बने ,उससे नाराजगी दिखाये क्योकि आपके मित्र पर आपका हक बनता हैं।उसे उलाहने देकर प्यार जताये ना कि ताने मारकर नफरत-
                         ऐसी वाणी बोलिये,मन का आपा खोय
                         औरन को शीतल करै,आपहु शीतल होय

12. ज्ञान बांटते ना फिरे ना ही बेवजह की बहस में हिस्सा ले,अपने आपको आकर्षण का केन्द्र बनाने के चक्कर में चापलुसी ना करे।
13. किसी की भी छवि को बिगाड़ने के लिये या फिर मात्र अपनी ईर्ष्या की आग को शांत करने के लिये अपशब्दों का प्रयोग ना करे।
14. आपके आस पास या आपके परिवार में ही किसी ने कुछ बहुत अच्छा किया हैं तो उसे अहसास कराये कि वो वाकई काबिले तारीफ़ है,यकिन मानिये आपका कद नीचा नहीं होगा बल्कि आप बड़प्पन ही महसूस करेंगे।
15. किसी की तारीफ़ नहीं कर सकते तो कम से कम टांग मत खींचीये क्योकि चतुर नार का मानना है कि अक्सर लोग जब किसी की सफलता पचा नहीं पाते तो किसी ओर की सफलता को बढ़ा चढ़ा कर बताते हैं या फिर अच्छी किस्मत बता कर उसकी सफलता पर पानी फेर देते हैं।
16. अपने अंह की संतुष्टी मात्र के लिये अपनी कठोर जबान से बेवजह बहस कर किसी को नीचा ना दिखाये
                           

                                           प्रभू' को भी पसंद नहीं
                                                 'सख्ती' 'बयान' में,
                                  इसी लिए 'हड्डी' नहीं दी, 'जबान' में.

17. आपके बोल ही आपका मोल कराते हैं,ऐसा बोलिये कि कोई एक बार आपसे मिल ले तो आपके व्यक्तित्व की छाप उस पर पड़ जाये।चतुर नार गुगल बाबा के सौजन्य से कहती है-
                   जग ने मुझको सीख दी,तोल मोल के बोल
                  अब मैं बोलू तोल के , लोग कहे अनमोल ।

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