करना है कुछ काम
शुरु करो अंताक्षरी
लेकर प्रभु का नाम
बचपन में जब भी कभी फ़्री होते थे यही करते थे, लेकिन अब परिस्थितियाँ, हालात और समय सब बदल गया है, पहली बात तो आज की व्यस्त जिन्दगी में फ़ुर्सत के पल मिलते नहीं और अगर मिलते भी है तो व्हॉट्सऐप और फ़ेसबुक उन्हे पूरी तरह से हथिया लेते है ।
जाते बसंत और आते फ़ागुन के बीच का मौसम ही कुछ ऐसा होता है जो गहरी वीरानी समेटे आता है, व्यस्त होते हुए भी एक सुनापन मन में गहरे तक उतर जाताहै। ऐसे ही अवसाद भरे मौसम में मैं अपने ड्रॉईंगरुम से खिड़कियों में लगे पौधों को निहार रही थी, वो भी खिले होने के बावजूद बेजान लग रहे थे, लग रहा था जैसे निराशा ओढ़े
हुए हो। तभी मेरे मस्तिष्क में जैसे कोई तरंग सी उठी और अवसाद को छूमंतर करके
हम झुम उठे मैं भी और मेरे पौधें भी..... ☺️
अपने रंगों को बाहर निकाला |
प्यारे से शब्दों का साथ दिया |
आ, रंग दूँ मैं तुझे गेरुआ |
किसी को गेरुआ तो किसी को हरा रंगा |
प्यारी सी शक्ल दी
अब कुछ भी उदास नहीं था |
1. समय का सही सदुपयोग करे
2. मंनोरंजन की बजाय अपने अस्तित्व पर ध्यान दे
3. अपने सकारात्मक गुणों की खोज करे
4. व्यस्त रहे,यह सबसे अच्छा तरीका है नकारात्मकता से दूर रहने का
5. कुछ भी करे ,दिल से करे
6. आपके आस पास हर जगह संगीत है ,बस महसूस कीजिये और झुमे
7. याद रखिये,अकेलापन अवसाद नहीं है बल्कि आपका एक बेहतर दोस्त है जिस समय आप अपना निरीक्षण कर सकते है
8. यकिन मानीये जब मैं अकेली रहती हूँ तो बहुत कुछ अच्छा करती हूँ
9. आप भीड़ में रहे या अकेले कोई फर्क नहीं पड़ता ,बस आपको अपने खुद के साथ खड़े रहना है,स्वयं को प्राथमिकता देनी है।
जाईये,जी लीजिये अपने आप को,चतुर नार की शुभकामनायें आपके साथ है ।सिर्फ पौधों को ही नहीं अपनी पूरी जिन्दगी को नयी रोशनी दिखाईये ।
दुख दर्द जीवन की यात्रा में पड़ने वाला एक अहम् पड़ाव है, इसको एक किनारे छोड़ कर आगे कैसे बड़ा जाये और जिंदगी कैसे जी जाये ये कोई आपसे सीखे l कितनी भी तारीफ करूँ मैं आपकी, कम है :)
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