Thursday, March 17, 2016

मायका

मायका, एक मिठास भरा शब्द जो जिन्द़गी को चाशनी सा बना देता है। कल ही मायके से लौटी हूँ सो चाशनी से लबालब है जीवन। हालांकि माँ के बिना क्या मायका......लेकिन फिर भी जब हर कोने में माँ की यादें बसी हो,हर आहट में माँ की पदचाप हो और ओढ़ने की चादर में माँ की खुशबू हो तो फिर माँ की कमी कहाँ ? वैसे भी चतुर नार, जो खो चुका है उसमे दुखी होने की बजाय जो रह गया है उसे संजोने में ज्यादा विश्वास रखती है,बस वैसे ही माँ की यादों से सजे पीहर में खुशगवार पल बिता कर आई हूँ मैं ।
              मायके की तो हर बात ही जीवंत होती है,हर तरफ बस मान मनुहार।बात सिर्फ मेरे घर की नहीं हैं, बात मेरे पूरे मायके की है, गली-मौहल्ले, दुकान और दुकानदारों की हैं,सुबह की पूरवाई और शाम की है,दादा दादी के स्नेह और लाड़ की है, जहाँ गुजरा था बचपन उन गली गलियारों की हैं,यहाँ बात हर नन्हे से पल की हैं।
               पिछले दो दशकों में बहुत कुछ बदल गया,मेरा शहर सिटी बन गया,गलीयाँ सड़क बन गयी,मेरा स्कुल नयी ईमारत मे तब्दील हो गया,साथ पढ़े थे जो चेहरे वो बदल बदल से गये लेकिन फिर भी मायका तो मायका हैं बिल्कुल पहले जैसा, हर बार मीठा अहसास।
                       बचपन में जिन गलियों से हो कर स्कुल जाया करती थी भले ही उनके रूप रंग बदल गये हो, लेकिन आज भी वे गलियाँ बचपन की यादें ताजा कर देती हैं। घर के आस पास की दुकानें आज भी वैसी ही है,हाँ चेहरे मोहरे जरुर बदल गये है ,लेकिन जो नहीं बदला,वो हैं स्नेह उनकी आँखों का । जब उन दुकानों पर जाती हूँ तो बड़े ही अपनेपन से दिल खोल देते हैं जैसे बिटीया उन्ही के घर आयी हो। मेरे बच्चें साथ होते हैं तो उनके बारे में पूछते हैं कि कौनसी कक्षा में पढ़ते है वैगरह वैगरह, फिर बच्चें मुझसे पुछते हैं कि ये आपके रिश्तेदार है क्या और जब मैं बताती हूँ कि नहीं, मैं बचपन में इनकी दुकान पर आती थी बस,तो वे आश्चर्यचकित रह जाते है.......😊 यह होता है मायका।
           साड़ीयाँ खरीदने जाती हूँ तो पहले तो हालचाल पुछा जाता हैं यहाँ तक कि कंवरसाहब के भी हालचाल पुछ लिये जाते है फिर बड़े ही मान मनुहार से साड़ीयाँ दिखाई जाती है और कभी पैसे कम पड़ जाते है तो बोला जाता है कि पैसे किसने मांगे हैं, साड़ी पसंद हैं ना लेकर जा ...... यह होता है मायका।
            रास्ते में कही सहेली के मम्मी पापा या भाई भाभी मिल जाते है तो ऐसा लाड़ मिलता है कि मेरे शहरी बच्चें स्तब्ध रह जाते है 😜। पड़ौस के मंदिर में जाती हूँ तो आज भी प्रसाद ज्यादा मिलता है।यहाँ तक की महरिन भी हक जता के पुछ लेती है कि बिटीयाँ कब तक रुकोगी और मैं भी सस्नेह उन्हे दादी ताई ही संबोधन देती हूँ..... यह होता है मायका।
       यहाँ तक की पड़ौस में पानी पूरी वाला भी मायके वाला अहसास दे देता है , कोई गिनती नहीं , अगर मीरा ( भतीजी ) को एक और पूरी चाहिये तो वो अपने आप उनके ठेले से उठा सकती है। पानी पूरी हो या आलु की टिकियां हर चीज ज्यादा स्वादिष्ट बना के दी जाती हैं , चटनियों के साथ स्नेह भी परोसा जाता है...... यह होता है मायका।
           हर जगह सिर्फ मनुहार ही मनुहार ,कोई पराया नहीं सिर्फ अपनापन,स्नेह,लाड़ और दुलार...... यही है मायके की फ़ितरत।
          "चतुर नार" भी आज मुक हैं क्योकि मायके में रहने के कोई कायदे कानुन नहीं , यह आपका अधिकार है जिसे आप जैसे चाहे जी सकते है।

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